KNEWS DESK- हरियाणा में दुकानों और निजी कमर्शियल संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए रोजाना काम के घंटे नौ से बढ़ाकर दस करने का रास्ता साफ हो गया है। इसे लेकर हरियाणा विधानसभा में हरियाणा शॉप्स एंड कमर्शियल एस्टैब्लिशमेंट्स (अमेंडमेंट) बिल, 2025 को पास कर दिया गया है। यह बिल साल 1958 के मूल कानून में संशोधन के लिए लाया गया था।
श्रम मंत्री अनिल विज ने सदन में बिल का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य राज्य में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना और छोटे कारोबारों पर कंप्लायंस का बोझ कम करना है। उनके मुताबिक, इन सुधारों से कारोबारियों को सहूलियत मिलेगी और साथ ही मजदूरों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाएगी।
हालांकि, विपक्ष ने इस बिल का कड़ा विरोध किया। कांग्रेस विधायक आदित्य सुरजेवाला ने इसे ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ की जगह ‘आधुनिक गुलामी को कानूनी रूप देने’ जैसा बताया। उन्होंने कहा कि काम के घंटे बढ़ाने और ओवरटाइम की सीमा में भारी इजाफा करने से कर्मचारियों के निजी और पारिवारिक जीवन पर सीधा असर पड़ेगा।
बिल में ओवरटाइम को लेकर भी बड़ा बदलाव किया गया है। अब एक तिमाही में ओवरटाइम की अधिकतम सीमा 50 घंटे से बढ़ाकर 156 घंटे कर दी गई है। इसके अलावा, बिना ब्रेक के लगातार काम करने की सीमा को पांच घंटे से बढ़ाकर छह घंटे करने का प्रस्ताव भी शामिल है। श्रम मंत्री अनिल विज का कहना है कि इससे दुकानों और कमर्शियल संस्थानों को ज्यादा मांग के समय काम संभालने में आसानी होगी।
इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने एक संशोधन पेश कर मौजूदा नौ घंटे की सीमा बनाए रखने की मांग की, लेकिन सदन ने इसे ध्वनि मत से खारिज कर दिया। सुरजेवाला ने सवाल उठाया कि अगर कोई कर्मचारी रोजाना 10 घंटे काम करे और ऊपर से दो घंटे ओवरटाइम दे, तो सप्ताह में छह दिन 12 घंटे काम करने वाले व्यक्ति के पास अपने परिवार और खुद के लिए कितना समय बचेगा।
बिल का एक अहम प्रावधान छोटे कारोबारों से जुड़ा है। श्रम मंत्री ने बताया कि अब 20 से कम कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों को रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं होगी। उन्हें केवल अपने बिज़नेस की जानकारी देनी होगी। सरकार का दावा है कि इससे छोटे कारोबारों में नॉन-कंप्लायंस का डर खत्म होगा और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
हालांकि, विपक्ष का आरोप है कि इस बदलाव से 20 से कम कर्मचारियों वाले करीब 80 प्रतिशत से ज्यादा दुकानें और एस्टैब्लिशमेंट इस कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे, जिससे मजदूरों के अधिकार कमजोर पड़ सकते हैं।
कुल मिलाकर, यह बिल हरियाणा में श्रम सुधारों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, लेकिन इसे लेकर सरकार और विपक्ष के बीच ‘आर्थिक विकास बनाम श्रमिक हित’ की बहस और तेज हो गई है।