गाजियाबाद में बंदरों का आतंक, हाईकोर्ट ने पूछा, सरकार के पास क्या योजना है?

डिजिटल डेस्क- शहर में बंदरों का आतंक बढ़ते ही मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। कोर्ट ने इस गंभीर समस्या पर सख्त रुख अपनाते हुए उत्तर प्रदेश के प्रधान सचिव (शहरी विकास) से पूछा है कि बंदरों के आतंक को रोकने के लिए सरकार के पास क्या योजना है। अदालत ने यह भी कहा कि समस्या से निपटने में हर विभाग अपनी जिम्मेदारी दूसरे पर टाल रहा है, जो स्वीकार्य नहीं है।

याचिका में क्या मांगा गया

इस मामले में याचिका गाजियाबाद के दो निवासियों बीजेपी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता विनीत शर्मा और बी.टेक छात्रा प्राजक्ता सिंघल ने दायर की है। उनके वकील आकाश वशिष्ठ ने कोर्ट को बताया कि बंदरों के झुंड (200 से अधिक) शहर और आसपास के जिलों में लोगों के जीवन को मुश्किल बना रहे हैं। याचिका में सरकार से अनुरोध किया गया है कि बंदरों के लिए उचित एक्शन प्लान तैयार किया जाए, जिसमें चिकित्सा केंद्र, बचाव वैन, खाने की व्यवस्था और एक हेल्पलाइन पोर्टल शामिल हो। वकील ने कोर्ट को बताया कि बंदरों के हमलों से फसलें बर्बाद हो रही हैं और स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा भी खतरे में है। इस समस्या की गंभीरता के चलते कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई जल्द तय की है।

सरकारी विभागों की लापरवाही पर सवाल

इससे पहले कई सरकारी विभागों को नोटिस भेजा गया था, लेकिन किसी ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया। गाजियाबाद के जिलाधिकारी ने भी प्रधान सचिव को पत्र भेजकर दिशानिर्देश और एसओपी बनाने की मांग की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हाईकोर्ट ने अब स्पष्ट कहा है कि नगरपालिका अधिनियम के तहत शहरों और कस्बों में बंदरों के आतंक को रोकना स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है। चूंकि सभी नगरपालिकाएं शहरी विकास विभाग के अंतर्गत आती हैं, इसलिए अदालत ने सीधे प्रधान सचिव से जवाब मांगा है।