नाबालिग से रेप केस में पीड़िता सुप्रीम कोर्ट पहुंची, आसाराम की जमानत रद्द करने की मांग तेज

डिजिटल डेस्क- नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आसाराम को मिली अंतरिम जमानत पर अब नया विवाद खड़ा हो गया है। पीड़िता सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है और उसने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा 6 महीने की चिकित्सा आधार पर दी गई जमानत को चुनौती देते हुए इसे तुरंत रद्द करने की मांग की है। पीड़िता की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय का यह फैसला मेडिकल तथ्यों व कानून के अनुरूप नहीं है। पीड़िता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश वकील एल्जो जोसफ ने दलील दी कि राजस्थान हाईकोर्ट ने अगस्त में एक विशेषज्ञ मेडिकल बोर्ड का गठन किया था। इस बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा था कि आसाराम की हालत स्थिर है और उन्हें न तो अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत है और न ही कोई गंभीर चिकित्सा आपात स्थिति है। ऐसे में उन्हें 6 महीने की जमानत देना कानून का दुरुपयोग है और अदालत को इसे रद्द करना चाहिए।

गुजरात हाईकोर्ट ने भी राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर दी जमानत

29 अक्टूबर को राजस्थान हाईकोर्ट ने आसाराम को 6 महीने की अंतरिम जमानत दी थी, जिसके आधार पर 6 नवंबर को गुजरात हाईकोर्ट ने भी उन्हें समान अवधि की जमानत दे दी। गुजरात हाईकोर्ट ने कहा था कि जब राजस्थान हाईकोर्ट ने चिकित्सा आधार पर राहत दी है, तो वह अलग रुख नहीं अपना सकता। अदालत ने यह भी कहा कि अगर राजस्थान सरकार इस फैसले को चुनौती देती है, तो गुजरात सरकार भी उसी आधार पर आगे कदम उठा सकती है।

पीड़िता के वकील ने लगाए गंभीर आरोप — “बीमार नहीं, घूम रहे हैं आसाराम”

याचिकाकर्ता पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आसाराम की ओर से जो बीमारी का हवाला दिया जा रहा है, वह वास्तविक स्थिति से मेल नहीं खाता। वकील ने दावा किया कि जमानत मिलने से पहले और बाद में भी आसाराम अहमदाबाद, जोधपुर, इंदौर, ऋषिकेश से लेकर महाराष्ट्र तक यात्रा करते रहे हैं। न तो उन्होंने किसी अस्पताल में लंबा उपचार कराया और न ही कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या सामने आई। वकील ने कहा कि “वे लगातार घूमते रहे हैं, ऐसे व्यक्ति को गंभीर मरीज बताकर जमानत देना न्याय के साथ खिलवाड़ है।”

86 साल की उम्र का हवाला, लेकिन पीड़िता का सवाल — “अगर बीमार हैं तो घूम कैसे रहे हैं?”

आसाराम की उम्र 86 वर्ष है और उनकी टीम लगातार इलाज की जरूरत का हवाला दे रही है। वहीं पीड़िता पक्ष का कहना है कि आयुर्वेदिक उपचार जोधपुर में पहले से ही चल रहा था और वे किसी भी तरह की जीवन-रक्षक चिकित्सा में नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि चिकित्सा सुविधाओं के नाम पर उन्हें मिली राहत न केवल अनुचित है बल्कि इसका गलत इस्तेमाल होने की आशंका भी है।

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