एमसीडी वार्ड समिति चुनाव: भाजपा-आप-आईवीपी में कड़ी टक्कर, कांग्रेस बनी ‘किंगमेकर’

KNEWS DESK-  दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की वार्ड समितियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के लिए सोमवार को होने वाले चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), आम आदमी पार्टी (आप) और इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी (आईवीपी) ने जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। इस बार मुकाबला पारंपरिक नहीं, बल्कि बदली हुई सियासी तस्वीर पेश कर रहा है जहां उभरती हुई पार्टी आईवीपी भाजपा के साथ गठबंधन में प्रमुख भूमिका निभा रही है।

पार्षदों की निष्ठा बनाए रखने और विरोधी खेमे में सेंध लगाने के लिए सभी पार्टियों ने रणनीतिक बैठकें शुरू कर दी हैं। भाजपा और आईवीपी जहां संयुक्त उम्मीदवारों को जिताने के लिए कमर कस चुके हैं, वहीं आप भी अपने पार्षदों को एकजुट रखने के लिए लगातार संपर्क और बैठकें कर रही है। कांग्रेस ने इन चुनावों में किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं किया है। हालांकि, उसके पार्षदों का समर्थन किसे मिलेगा, यह इन चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

कहां किसका पलड़ा भारी?

  • सिविल लाइन जोन: भाजपा और आईवीपी के पास 11 पार्षद हैं जबकि आप के पास 8। हालांकि अगर भाजपा खेमे से दो पार्षद क्रॉस वोटिंग करते हैं, तो समीकरण पलट सकते हैं।

  • रोहिणी जोन: भाजपा-आईवीपी के पास 11, आप के पास 10 और कांग्रेस के दो पार्षद हैं। कांग्रेस मतदान में हिस्सा नहीं लेती है तो भाजपा को बढ़त मिल सकती है, लेकिन नाराजगी अगर सामने आई, तो परिणाम अप्रत्याशित हो सकते हैं।

  • पश्चिमी जोन: आप के पास 13 पार्षद हैं जबकि भाजपा-आईवीपी के पास 12। यहां आप मजबूत स्थिति में है, मगर एक भी पार्षद के खेमे से निकलने पर स्थिति बदल सकती है।

  • दक्षिणी जोन: आप के पास 10 पार्षद हैं, भाजपा-आईवीपी के पास 9 और कांग्रेस के पास एक। पिछले चुनाव में आप के ही 5 पार्षदों ने क्रॉस वोट किया था। इस बार भी यही स्थिति बनी तो नुकसान तय है।

एमसीडी की 12 वार्ड समितियों में से तीन समितियों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष निर्विरोध चुने जाएंगे। करोल बाग और सिटी-पहाड़गंज में आम आदमी पार्टी तथा केशवपुरम में भाजपा के पार्षद निर्विरोध विजयी होंगे। आप ने कांग्रेस पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि उनके पार्षद किस पैनल को समर्थन देंगे। आप का आरोप है कि कांग्रेस भाजपा समर्थित पैनल को समर्थन दे सकती है, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों को ठेस पहुंचेगी।

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