KNEWS DESK- मद्रास उच्च न्यायालय ने आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव की शिक्षाओं को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। अदालत ने यह जानना चाहा है कि जब सद्गुरु ने अपनी बेटी की शादी कर दी है, तो वे अन्य युवतियों को सिर मुंडवाने और संन्यासी जीवन जीने के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर, एस कामराज, ने अपनी बेटियों को ईशा फाउंडेशन में रहने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया।
कामराज ने याचिका में मांग की थी कि उनकी दो शिक्षित बेटियों को अदालत में पेश किया जाए। सोमवार को, अदालत में पेश होने पर दोनों बेटियों ने स्पष्ट किया कि वे अपनी इच्छा से ईशा फाउंडेशन में रह रही हैं और उन्हें किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला गया है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम और वी शिवगनम की पीठ ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक से पूछा, “एक व्यक्ति जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी, वह दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और संन्यासी जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहा है?” यह सवाल सद्गुरु की शिक्षाओं की प्रकृति पर विचार करने के लिए महत्वपूर्ण है।
ईशा फाउंडेशन का बयान
ईशा फाउंडेशन ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि वे वयस्क व्यक्तियों की स्वतंत्रता और विवेक का सम्मान करते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि संन्यास लेने या विवाह न करने का निर्णय व्यक्तिगत है और इस पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डाला जाता। फाउंडेशन ने यह भी बताया कि वहाँ हजारों लोग रहते हैं जो संन्यासी नहीं हैं, साथ ही कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने ब्रह्मचर्य या संन्यासी बनने का विकल्प चुना है।
भविष्य की कार्रवाई
अदालत ने मामले की आगे जांच करने का आदेश दिया है और पुलिस को ईशा फाउंडेशन से संबंधित सभी मामलों की सूची तैयार करने का निर्देश दिया है। यह देखना होगा कि इस मामले का आगे क्या विकास होता है और सद्गुरु की शिक्षाओं पर उठे सवालों का उत्तर कैसे दिया जाएगा।
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