KNEWS DESK- कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक में एक बड़ा और राजनीतिक रूप से अहम फैसला लेते हुए 60 आपराधिक मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इनमें वे मामले भी शामिल हैं जो 2019 में चित्तापुर और कनकपुरा में हुई पत्थरबाजी की घटनाओं से जुड़े हैं। सरकार का कहना है कि यह कदम जनता, छात्रों, किसानों, कन्नड़ कार्यकर्ताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं से आई लगातार मांगों के मद्देनज़र उठाया गया है।
सूत्रों के अनुसार, जिन मामलों को वापस लेने की मंजूरी दी गई है, उनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं- 2019 चित्तापुर पत्थरबाजी मामला: पुलिस द्वारा पशुओं की जब्ती के दौरान हुआ था बवाल। कनकपुरा में डी.के. शिवकुमार की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी से जुड़े केस। 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री के घेराव का मामला, जब डी.के. सुरेश के समर्थकों ने उन्हें डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कार्यक्रम से बाहर रखे जाने का विरोध किया था। गणेश उत्सव के दौरान हुई झड़पों, किसानों के आंदोलनों, दलित और कन्नड़ संगठनों के विरोध प्रदर्शन से जुड़े मामले।
सरकार के अनुसार, इन मामलों को वापस लेने से सामाजिक तनाव कम होगा और आम नागरिकों पर लटक रही कानूनी कार्रवाई की तलवार हटेगी।
हालांकि इस फैसले पर गृह विभाग, डीजीपी और आईजीपी, अभियोजन निदेशक और विधि विभाग ने आपत्ति जताई थी। उनका मानना था कि सभी मामले न्यायिक प्रक्रिया के दायरे में हैं और उन्हें वापस लेना कानून के साथ खिलवाड़ हो सकता है।
बावजूद इसके, कैबिनेट सब-कमेटी द्वारा की गई समीक्षा के आधार पर ये मामले कैबिनेट में रखे गए, और सरकार ने इन सभी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए फैसला पारित कर दिया।
इस फैसले पर जल्द ही विपक्ष द्वारा तीखी प्रतिक्रिया आने की संभावना है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कई मामले सीधे तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और उनके समर्थकों से जुड़े हैं, जिससे यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह कदम राजनीतिक दबाव में लिया गया है?
हालांकि सरकार का दावा है कि यह फैसला न्याय, सामाजिक संतुलन और शांति बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है।राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि इन मामलों की वापसी का मकसद राजनीतिक नहीं, बल्कि मानवीय और सामाजिक दृष्टिकोण से है। सरकार के प्रवक्ता ने कहा “किसानों, छात्रों, दलितों और कन्नड़ कार्यकर्ताओं पर दर्ज मामलों से उनका भविष्य प्रभावित हो सकता था। यह फैसला उनके जीवन को सामान्य बनाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।”