Janmashtami 2025: भगवान कृष्ण के मुकुट में क्यों सजाया जाता है मोरपंख? जानें आध्यात्मिक रहस्य…

KNEWS DESK- भगवान श्रीकृष्ण का नाम लेते ही मन में जो छवि उभरती है, उसमें बांसुरी की मधुर धुन, पीतांबर वस्त्र, मोहक मुस्कान और सिर पर सजा मोरपंख स्पष्ट दिखाई देता है। यह मोरपंख केवल एक सजावटी वस्तु नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक प्रतीक है जो श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व और उनकी लीलाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। भक्ति की परंपरा में यह माना जाता है कि जैसे कृष्ण बिना बांसुरी के अधूरे हैं, वैसे ही उनके मुकुट की शोभा बिना मोरपंख के अधूरी मानी जाती है।

एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, जब नन्हे कान्हा का जन्म हुआ, तो कुछ समय बाद माता यशोदा ने उनके भविष्य की जानकारी के लिए एक ज्योतिषी को बुलाया। ज्योतिषी ने बताया कि कान्हा की कुंडली में राहु दोष है। यशोदा, जो अपने बालक को हर प्रकार की विपत्ति से बचाना चाहती थीं, ने उपाय पूछा। तब बताया गया कि यदि मोरपंख हमेशा कृष्ण के पास रहेगा, तो राहु दोष शांत रहेगा। उस दिन से यशोदा ने मोरपंख को कान्हा के मुकुट में सजा दिया — और वह दृश्य इतना सुंदर था कि वह श्रृंगार सदा के लिए कान्हा की पहचान बन गया।

एक अन्य कथा कहती है कि माता यशोदा प्रतिदिन कान्हा को अलग-अलग रूपों में सजाया करती थीं। एक दिन उन्होंने मोरपंख से श्रृंगार किया। जब कृष्ण उस श्रृंगार में लोगों के सामने आए, तो हर कोई उनके सौंदर्य पर मोहित हो गया। उस दिन से मोरपंख केवल श्रृंगार का हिस्सा नहीं रहा, बल्कि वह कृष्ण की दिव्य आभा का स्थायी प्रतीक बन गया।

तीसरी कथा वन की उन लीलाओं से जुड़ी है जहां बाल गोपाल बांसुरी बजा रहे थे। बांसुरी की मधुर धुन सुनकर वन के मोर झूम उठे और आनंद में भरकर नृत्य करने लगे। नृत्य समाप्त होने पर मोरों के समूह ने अपने सबसे सुंदर पंखों को कृष्ण के चरणों में समर्पित किया। कृष्ण ने प्रेमपूर्वक उन पंखों को स्वीकार किया और एक पंख को अपने मुकुट में सजा लिया। यह प्रसंग न केवल भगवान के प्रकृति के साथ रिश्ते को दर्शाता है, बल्कि उनके भीतर की करुणा और प्रेम की भावना को भी उजागर करता है।

हिंदू धर्मग्रंथों में मोरपंख का महत्व अनेक बार वर्णित है। गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण और भागवत पुराण में मोरपंख को सौभाग्य, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक बताया गया है। मोरपंख में विद्यमान रंग — नीला, हरा और सुनहरा — ब्रह्मांडीय ऊर्जा और सृष्टि के संतुलन का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसे तमस यानी नकारात्मकता का नाशक माना गया है, जो न केवल राहु-केतु जैसे ग्रहों के दोष को शांत करता है, बल्कि मानसिक शांति और स्थिरता भी प्रदान करता है।

आज भी, जब कोई भक्त भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करता है, तो मोरपंख का महत्व विशेष रूप से देखा जाता है। यह पंख केवल एक श्रृंगार नहीं है — यह श्रीकृष्ण की लीलाओं, उनके प्रेम, करुणा और उनके ईश्वरत्व का प्रतीक है। जन्माष्टमी के अवसर पर तो विशेष रूप से मोरपंख का प्रयोग श्रीकृष्ण के झूले, मुकुट और मंदिर की सजावट में किया जाता है।