KNEWS DESK… लोकसभा में जन विश्वास बिल 2023 आज यानी 2 अगस्त को पारित हो गया है. जबकि राज्यसभा में इसे पेश किया जाना अभी बाकी है. इस बिल के तहत सरकार 19 मंत्रालयों द्वारा प्रशासित 42 केंद्रीय अधिनियमों में 182 प्रावधानों को जेल की सजा से मुक्त कर रही है.
दरअसल आपको बता दें कि जन विश्वास विधेयक के तहत इन कानूनों को अपराध के दायरे से बाहर निकाला जा रहा है. इनमें ड्रग्स एवं कास्मेटिक एक्ट, फार्मेसी एक्ट, फूड सेफ्टी एक्ट एवं प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट आदि प्रावधानों को शामिल किया गया हैं. इसमें दवाओं की क्वालिटी जैसे मामलों को भी शामिल किया गया है. इन कानूनों में पहले दी जाने वाली जेल की सजा को खत्म करने का प्रयास किया गया है. जहां इस बिल को लेकर कुछ लोगों ने इसके जेल की सजा को खत्म करना स्वागत किया है. तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इस कानून को कारावास के खौफ से अलग करना गलत साबित हो सकता है. भारत में इस समय 1,536 कानून हैं. जिसके तहत 70 हजार नियम बनाए गए हैं. इन नियमों का पालन देश के सभी निवासियों को करना अनिवार्य है. जबकि जन विश्वास बिल 42 कानूनों तक ही सीमित है. इस बिल को संसद में पेश करते हुए वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि कुछ ऐसे छोटे अपराध भी हैं जिसके तहत किसी को जेल भेजना इंसाफ नहीं है.
विपक्ष ने किया विरोध
जानकारी के लिए बता दें कि जन विश्वास बिल पर अपना विरोध जताते हुए पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव का कहना है कि देश में 7,000 से अधिक जेनरिक दवाएं बनाई जाती हैं. जिनमें आपराधिक कृत्यों के किए जाने की गुंजाइश बहुत ज्यादा है. इसलिए इस बिल के तहत जेल की सजा को समाप्त किया जाना गलत है. इससे अपराधियों के हौसले बुलंद होने संभावना बढ़ जाती है. दवाओं की क्वालिटी के मामले में कोई भी कोताही करना मरीजों के जान से खिलवाड़ करने के बराबर है. यह मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है.
जुर्माने की राशि को रखा गया बरकरार
प्रस्तावित जन विश्वास बिल के तहत भारतीय वन अधिनियम 1927, ड्रग्स एंड कास्मेटिक एक्ट 1940, पर्यावरण संरक्षण एक्ट 1986, वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1981, सूचना टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 में संशोधन करते हुए अपराधियों के लिए जेल की सजा को हटा दिया गया है. वहीं इस कानून में जुर्माने की राशि को बरकरार रखा गया है.