KNEWS DESK- संविधान दिवस के मौके पर आज संसद के सेंट्रल हॉल में आयोजित एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारतीय लोकतंत्र और संविधान के प्रति अपनी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने विशेष रूप से डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि अगर राजनीतिक दल धर्म को देश से ऊपर रखेंगे, तो देश की आज़ादी एक बार फिर खतरे में पड़ सकती है। उनके इस बयान ने लोकतांत्रिक संस्थाओं की सुरक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने की आवश्यकता को प्रमुखता से उठाया।
धनखड़ ने जताई लोकतांत्रिक संस्थाओं के खतरे पर चिंता
उपराष्ट्रपति ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को संकट में डालने के लिए जानबूझकर अशांत माहौल तैयार किया जा रहा है। उनका कहना था कि इस समय यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं की पवित्रता और निष्पक्षता बनाए रखें। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि राजनीतिक दल देश के ऊपर धर्म को प्राथमिकता देंगे, तो हमारी स्वतंत्रता और लोकतंत्र की नींव खतरे में पड़ जाएगी।
लोकतांत्रिक मंदिरों की पवित्रता की आवश्यकता
धनखड़ ने लोकतंत्र के तीन स्तंभों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि लोकतंत्र का सबसे अच्छा पोषण तभी होता है जब इन संवैधानिक संस्थाओं के बीच तालमेल और एकता बनी रहती है। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र की पवित्रता को बहाल करने का समय अब आ गया है, और इसके लिए रचनात्मक संवाद, बहस और सार्थक चर्चा की आवश्यकता है।
संविधान और मौलिक कर्तव्यों का महत्व
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि हमारा संविधान केवल मौलिक अधिकारों का आश्वासन नहीं देता, बल्कि यह नागरिकों को अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करने की भी प्रेरणा देता है। धनखड़ ने डॉ. अंबेडकर के शब्दों का संदर्भ देते हुए कहा कि आंतरिक संघर्ष, बाहरी खतरों से कहीं अधिक लोकतंत्र के लिए खतरे का कारण हो सकते हैं। उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे राष्ट्रीय संप्रभुता, एकता, पर्यावरण सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखें।
डॉ. अंबेडकर के ऐतिहासिक बयान का हवाला
डॉ. अंबेडकर के 25 नवंबर, 1949 के संविधान सभा में दिए गए बयान को याद करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “भारत ने अपनी आज़ादी एक बार खोई है, और यह अपने कुछ लोगों के विश्वासघात के कारण खोई थी। क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?” उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या भारतीय लोग अपने देश को सबसे ऊपर रखेंगे या फिर वे अपने पंथ और विश्वासों को देश से ऊपर रखेंगे।
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