उत्तरप्रदेश में कितनी है वक्फ की संपत्ति? ज्यादातर का नहीं है कोई आधिकारिक रिकॉर्ड

KNEWS DESK-  देश के दोनों सदनों से वक्फ संशोधन विधेयक 2025 पारित हो गया है, जिसने मुस्लिम समुदाय में गहरी नाराजगी पैदा की है। इस विधेयक के पारित होने के बाद वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और नियंत्रण को लेकर बहस तेज हो गई है, खासकर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में जहां वक्फ संपत्तियों का बड़ा हिस्सा मौजूद है।

2014 के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 1,24,720 वक्फ प्रॉपर्टीज हैं। इनमें से 1,19,451 संपत्तियां सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधीन हैं, जबकि शिया वक्फ बोर्ड के पास 5,269 संपत्तियां हैं। राजधानी लखनऊ में ही 3,072 वक्फ प्रॉपर्टीज पाई जाती हैं, जिसमें से सुन्नी वक्फ के पास 2,386 और शिया वक्फ बोर्ड के पास 686 संपत्तियां हैं।

हालांकि, राजस्व विभाग के आंकड़ों के मुताबिक वक्फ बोर्ड के द्वारा दावा की गई अधिकांश संपत्तियों का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के तहत केवल 2,533 संपत्तियां ही राजस्व अभिलेखों में पंजीकृत हैं, जबकि शिया वक्फ बोर्ड के तहत 430 संपत्तियां ही आधिकारिक रूप से दर्ज हैं।

उत्तर प्रदेश में कुछ वक्फ संपत्तियों को लेकर विवाद भी सामने आए हैं। दावा किया जाता रहा है कि राजभवन वक्फ की जमीन पर बना है, साथ ही मथुरा की शाही ईदगाह, बनारस में ज्ञानवापी, और लखनऊ में ऐशबाग ईदगाह भी वक्फ संपत्तियों के अंतर्गत आती हैं।

वक्फ का अर्थ अरबी में ‘अल्लाह के नाम से’ होता है, जिसका अर्थ है कि जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति वक्फ बोर्ड को दान करता है, तो वह संपत्ति अल्लाह के नाम पर एक धार्मिक दान बन जाती है। यह संपत्ति मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों, ईदगाहों और मजारों के निर्माण और रखरखाव के लिए इस्तेमाल की जाती है।

1954 में वक्फ अधिनियम को पहली बार लागू किया गया था। इसका उद्देश्य वक्फ की जमीनों पर नियंत्रण रखना और उनके गलत इस्तेमाल को रोकना था। इस अधिनियम के तहत वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और निगरानी के लिए एक कानूनी ढांचा तैयार किया गया था।

वक्फ संशोधन विधेयक 2025 के पारित होने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन कैसे होगा और क्या इससे मुस्लिम समुदाय के अधिकार प्रभावित होंगे? इस पर मतभेद और बहस अब भी जारी है, और इसे लेकर राजनीतिक और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर चर्चाएं हो रही हैं।

इस विधेयक के परिणाम और इसके लागू होने के तरीके पर आगे और भी बहस और विचार-विमर्श होने की संभावना है, जो भारत में धार्मिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य को प्रभावित कर सकती है।

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