डिजिटल डेस्क- बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा मुस्लिम डॉक्टर नुसरत परवीन का हिजाब खींचने का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। यह विवाद अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि देशभर में राजनीतिक, सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। महिला अधिकारों और मानवाधिकारों से जुड़े कई संगठनों ने इस घटना पर गंभीर चिंता जताई है। बढ़ते विरोध के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुश्किलें लगातार बढ़ती नजर आ रही हैं। इस विवाद के बाद जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी और पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती ने नीतीश कुमार के खिलाफ FIR दर्ज कराने के लिए श्रीनगर के कोठीबाग थाने का रुख किया। इल्तिजा मुफ्ती पीडीपी कार्यालय से मार्च निकालकर शिकायत दर्ज कराना चाहती थीं, लेकिन पुलिस ने सुरक्षा कारणों से मार्च की अनुमति नहीं दी। हालांकि, पुलिस ने उन्हें कुछ समर्थकों के साथ थाने जाकर शिकायत दर्ज कराने की इजाजत दी। इल्तिजा मुफ्ती ने मीडिया से बातचीत में कहा कि नीतीश कुमार की इस हरकत पर बीजेपी के कई नेताओं के बयान भी सामने आए हैं, जो बेहद आपत्तिजनक हैं। उन्होंने केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि मुस्लिमों को “भाड़ में जाने” जैसी भाषा का इस्तेमाल किया गया, जो अस्वीकार्य है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर मुस्लिम समुदाय क्यों अपमान सहे।
रांची और लखनऊ में भी दर्ज हुई FIR
इससे पहले झारखंड की राजधानी रांची में झारखंड मुस्लिम युवा मंच के कार्यकर्ताओं ने “महिलाओं का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान” के नारे लगाते हुए नीतीश कुमार का पुतला फूंका। यहां उनके खिलाफ FIR भी दर्ज कराई गई। वहीं लखनऊ के कैसरबाग थाने में मशहूर शायर मुनव्वर राणा की बेटी और सामाजिक कार्यकर्ता सुमैया राणा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और संजय निषाद के खिलाफ FIR दर्ज कराई है। सुमैया राणा ने कहा कि यह घटना समाज के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करती है और महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है।
विपक्ष और संगठनों की माफी की मांग
इस पूरे मामले को लेकर विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने नीतीश कुमार से बिना शर्त माफी की मांग की है। बताया जा रहा है कि पीड़ित डॉक्टर नुसरत परवीन इस घटना से इतनी आहत हैं कि उन्होंने बिहार मेडिकल सर्विस जॉइन न करने का फैसला किया है। मानवाधिकारों पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इस घटना पर चिंता जताते हुए कहा है कि किसी महिला की धार्मिक पहचान और निजी सम्मान से इस तरह का व्यवहार मानवाधिकारों का उल्लंघन है।