KNEWS DESK- लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने संसद व विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के लिए ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ लोकसभा में मंजूरी मिल गई है। इस अधिनियम के लोकसभा में पेश होने के साथ उत्तराखंड राज्य में मोदी सरकार की जमकर सराहना हो रही है। भाजपा के कार्यकर्ता और पदाधिकारी जमकर जश्न मना रहे हैं। ऐसे में जब यह विधेयक कानून का रूप लेगा, तब उत्तराखंड विधानसभा की तस्वीर भी बदल जाएगी। हालांकि जानकारों का मानना है कि महिला आरक्षण का कानून लागू होने में अभी वक्त लग सकता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि यह कानून लागू किए जाने से इससे पहले देश में जनगणना और परिसीमन की भी शर्त रखी गई है। आपको बता दें कि उत्तराखंड विधानसभा में हाल ही में चुनी गई पार्वती दास समेत कुल नौ महिला विधायक हैं और 33 प्रतिशत आरक्षण लागू होने के बाद उत्तराखंड विधानसभा में 23 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। सवाल ये है कि क्या तीन दशक से जो सपना साकार नहीं हुआ क्या वो सपना मोदी सरकार साकार करने वाली है?
वहीं राज्य की विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूडी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर सराहना की है उन्होंने कहा कि सरकार का ये कदम क्रांतिकारी है। प्रधानमंत्री ने हमेशा से महिलाओं की आवाज सुनी है व उनकी चिंता की है। प्रधानमंत्री महिलाओं के विकास और उन्हें नेतृत्व देने की बात करते हैं। महिलाओं के विकास के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण कदम है।
भले ही महिला आरक्षण विधेयक को लेकर महिलाओं की भागीदारी बढ़ने की बात कही जा रही हो लेकिन देश में महिला आरक्षण का कानून लागू होने में अभी वक्त लग सकता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि यह कानून लागू किए जाने से इससे पहले देश में जनगणना और परिसीमन की भी शर्त रखी गई है। आपको बता दें कि महिला आरक्षण बिल पिछले 27 वर्षों से लटका हुआ है। इसे पहली बार 12 सितंबर 1996 को एचडी देवगौड़ा की सरकार ने पेश किया था। हालांकि, उस वक्त ये बिल पास नहीं हो सका था। इसके बाद भी तमाम सरकारों ने इसे कानून का रूप देने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। वहीं अब इस मामले में कांग्रेस ने भी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है।
कुल मिलाकर तीन दशक के बाद एक बार फिर महिला आरक्षण पर उम्मीद जग गई है लेकिन सवाल ये है कि आखिर क्यों महिला आरक्षण अधिनियम में ओबीसी और अल्पसंख्य महिलाओं के लिए सरकार ने कोई प्रावधान नहीं किया? आखिर क्यों मोदी सरकार को चुनावी साल में महिला आरक्षण की याद आई?