दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने इस मामले में जो इंटरनल इन्क्वायरी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी, उसमें जस्टिस वर्मा के हवाले से यह दावा किया गया है कि यह पूरी घटना एक साजिश थी। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि घटना के समय जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी घर से बाहर थे। जब रात के करीब 12 बजे उनके घर में आग लगी, तो उनकी बेटी और निजी सचिव ने फायर ब्रिगेड को सूचित किया। आग बुझाने के बाद, जब वे सभी घटनास्थल पर लौटे, तो वहां पर कोई नकदी नहीं पाई गई।
जस्टिस वर्मा ने कहा, “मैं साफ तौर पर कह रहा हूं कि न तो मैंने और न ही मेरे परिवार के किसी सदस्य ने कभी भी अपने घर में नकदी रखी थी। मुझे इस आरोप की कड़ी निंदा करनी चाहिए कि यह नकदी हमारी थी।” उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें कभी भी अपने आवास के बाहरी हिस्से के स्टोर रूम में नकदी रखने की जानकारी नहीं थी।
वर्मा ने आगे कहा, “जहां आग लगी थी, वह एक अलग कमरा था, जहां मैं नहीं रहता। मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि मेरे खिलाफ आरोप लगाने से पहले कुछ जांच की जाती।” जस्टिस वर्मा ने पूरी तरह से यह आरोप खारिज किया कि उनके या उनके परिवार के पास कोई भी नकदी पाई गई थी। उन्होंने कहा कि न तो उन्हें जली हुई नोटों की कोई बोरी दिखाई गई और न ही उन्हें ऐसी कोई सूचना दी गई।
इस घटनाक्रम ने न केवल जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों को लेकर सवाल उठाए हैं, बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और पारदर्शिता को लेकर भी चर्चाएं शुरू कर दी हैं। मामले की पूरी सच्चाई सामने आने का इंतजार किया जा रहा है।
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