KNEWS DESK- भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित विदाई समारोह में भाग लिया, जहां उन्होंने अपने कार्यकाल को लेकर कुछ महत्वपूर्ण अनुभव साझा किए। इस दौरान सीजेआई ने न केवल अपने पेशेवर जीवन के कुछ अहम पहलुओं पर बात की, बल्कि अपने परिवार से जुड़े व्यक्तिगत किस्से भी सुनाए, जो उनके जीवन और कार्यक्षेत्र में अहम भूमिका निभाते रहे हैं।
पुणे के फ्लैट की यादें
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता, देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाईवी चंद्रचूड़ से जुड़ा एक बेहद दिलचस्प किस्सा सुनाया। उन्होंने बताया कि किस तरह से उनके पिता ने उन्हें पुणे में एक फ्लैट खरीदने की सलाह दी, लेकिन इसके पीछे एक गहरी सोच थी।
सीजेआई ने अपने संबोधन में कहा, “मेरे पिता ने पुणे में एक छोटा सा फ्लैट खरीदा था, और एक दिन मैंने उनसे पूछा, ‘आपने पुणे में फ्लैट क्यों लिया, जबकि आप इसमें रहेंगे भी नहीं?’ इस पर उन्होंने मुझे बताया, ‘मुझे पता है कि मैं इसमें नहीं रह पाऊंगा, और मुझे यह भी नहीं पता कि मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूंगा, लेकिन इस फ्लैट को तब तक रखना जब तक तुम न्यायाधीश के तौर पर सेवानिवृत्त नहीं हो जाते।'”
जब सीजेआई ने अपने पिता से इसकी वजह पूछी, तो उन्होंने जो उत्तर दिया वह आज भी चंद्रचूड़ के जीवन में एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश बनकर रहा। वाईवी चंद्रचूड़ ने कहा, “अगर तुम्हें कभी लगे कि तुम्हारी नैतिक और बौद्धिक ईमानदारी से समझौता हो रहा है, तो मैं चाहता हूं कि तुम्हारे पास हमेशा एक छत हो। ताकि कभी भी तुम्हें यह महसूस न हो कि तुम्हारे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है, और तुम किसी से समझौता करने पर मजबूर न हो।”
यह बातचीत सीजेआई के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई और उनके कार्यकाल में नैतिकता और ईमानदारी को प्राथमिकता देने की प्रेरणा बनी।
मां की यादें और परिवार का असर
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपनी मां प्रभा चंद्रचूड़ को भी याद किया, जो एक शास्त्रीय संगीतकार थीं और ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ी थीं। उन्होंने बताया कि बचपन में जब वह अक्सर बीमार रहते थे, उनकी मां पूरी रात जागकर उनकी देखभाल करती थीं। सीजेआई ने कहा, “मेरी मां ने मुझे हमेशा यही सिखाया कि धन अर्जित करना जीवन का उद्देश्य नहीं है। उन्होंने मेरा नाम ‘धनंजय’ इसीलिए रखा ताकि मैं जीवन में विद्या का धन अर्जित करूं, न कि भौतिक संपत्ति का।”
सीजेआई ने अपनी मां की इस शिक्षा को अपने जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में याद किया। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी मां का घर में विशेष प्रभाव था, और अधिकांश फैसले घर में उनकी मां ही लिया करती थीं। सीजेआई ने इसी संदर्भ में कहा, “मेरे घर में भी कई बार ऐसा होता है। जैसे ओडिशा में घर के फैसले मेरी पत्नी कल्पना करती हैं।”
हिंदी विषय का चयन और उसके फायदे
सीजेआई ने एक और दिलचस्प किस्सा सुनाया, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे उनके पिता के कहने पर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विषय को चुना था। चंद्रचूड़ ने बताया कि उनके पिता ने उन्हें हिंदी विषय लेने की सलाह दी, जो बाद में उनके करियर के लिए फायदेमंद साबित हुआ। जब वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज बने, तो हिंदी की पढ़ाई ने उन्हें न्यायालयीन कार्यों में मदद दी, खासकर हिंदी में लिखे गए मामलों को समझने में। यह बात सीजेआई ने इस बात को रेखांकित करते हुए कही कि कभी-कभी हमारे छोटे से निर्णय भी जीवन में बड़े फायदे लेकर आते हैं।
सीजेआई के विदाई शब्द
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने विदाई समारोह में कहा कि उन्हें इस समय बहुत ही मिश्रित भावनाएं महसूस हो रही हैं। नवंबर 2022 में भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के बाद, उन्होंने अपनी पूरी मेहनत और ईमानदारी से न्यायपालिका की सेवा की। अब, उनके बाद जस्टिस संजीव खन्ना मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगे। चंद्रचूड़ ने अपने विदाई भाषण में न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्याय के प्रति प्रतिबद्धता और समाज में समानता की दिशा में किए गए कार्यों का उल्लेख किया।
आने वाले समय में जस्टिस संजीव खन्ना का मार्गदर्शन
सीजेआई के रूप में डीवाई चंद्रचूड़ की विदाई के साथ, न्यायपालिका का नेतृत्व अब जस्टिस संजीव खन्ना के हाथों में होगा। जस्टिस खन्ना का नाम न्याय के प्रति उनके कड़े रुख और कानून के प्रति उनकी समझदारी के लिए जाना जाता है। चंद्रचूड़ ने उन्हें अपना समर्थन दिया और कहा कि वे भारतीय न्यायपालिका को एक नई दिशा देने में सक्षम होंगे।
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