KNEWS DESK- केंद्र सरकार ने मंगलवार को UPSC द्वारा 17 अगस्त को जारी किए गए लेटरल एंट्री विज्ञापन पर रोक लगाने का आदेश दिया है। यह निर्णय केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह के उस पत्र के बाद आया, जिसमें उन्होंने UPSC चेयरमैन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश का हवाला देते हुए सीधी भर्ती के विज्ञापन पर रोक लगाने को कहा था।
कार्मिक मंत्री ने पत्र में स्पष्ट किया कि सरकार का यह फैसला लेटरल एंट्री की व्यापक समीक्षा के तहत लिया गया है। उन्होंने बताया कि अधिकतर लेटरल एंट्री नियुक्तियां 2014 से पहले की गई थीं और ये अस्थायी आधार पर की गई थीं। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि लेटरल एंट्री हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए, खासकर आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में कोई भी छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि सामाजिक न्याय की दिशा में संवैधानिक जनादेश बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है ताकि वंचित समुदायों के योग्य उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। चूंकि लेटरल एंट्री से भरे गए पद विशेष होते हैं, इन पदों पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। इस प्रकार, सरकार का कहना है कि इन नियुक्तियों की समीक्षा और आवश्यक सुधार की आवश्यकता है, ताकि सार्वजनिक नौकरियों में सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता बनी रहे।
पूर्ववर्ती UPA सरकार पर निशाना साधते हुए पत्र में कहा गया कि लेटरल एंट्री का विचार 2005 में UPA सरकार द्वारा लाया गया था। उस समय वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में एक प्रशासनिक सुधार आयोग गठित किया गया था, जिसने इस दिशा में सिफारिशें की थीं। इसके बाद 2013 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशों में भी लेटरल एंट्री के सुझाव दिए गए थे।
17 अगस्त को UPSC द्वारा जारी विज्ञापन में लेटरल एंट्री के माध्यम से 45 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल की भर्तियों की घोषणा की गई थी। लेटरल एंट्री में उम्मीदवारों को UPSC की परीक्षा दिए बिना भर्ती किया जाता है, और इसमें आरक्षण के नियमों का लाभ भी नहीं मिलता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसका विरोध करते हुए आरोप लगाया था कि इस प्रकार की भर्ती से SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण खतरे में पड़ रहा है।
वहीं इस विवाद के बढ़ने पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने स्पष्ट किया कि नौकरशाही में लेटरल एंट्री एक नई बात नहीं है। उन्होंने बताया कि 1970 के दशक से कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान भी लेटरल एंट्री होती रही है, और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोईनुद्दीन अहलूवालिया इसके प्रमुख उदाहरण हैं|