क्या रद्द हो सकता है संसद से पारित कानून? किस आधार पर दी गई है वक्फ कानून को चुनौती?

KNEWS DESK-  5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलते ही वक्फ संशोधन बिल कानून का रूप ले चुका है। इससे पहले यह बिल 3 अप्रैल को लोकसभा और 4 अप्रैल को राज्यसभा में बहुमत से पारित किया गया था। लेकिन जैसे ही यह कानून बना, इसके खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई। असदुद्दीन ओवैसी और मोहम्मद जावेद जैसे प्रमुख नेताओं के साथ-साथ कुल 72 याचिकाएं इस कानून के खिलाफ दाखिल की गई हैं। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह कानून भारत के संविधान में निहित धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।

भारत का संविधान सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति देता है कि यदि कोई कानून संविधान की मूल भावना के विरुद्ध हो, तो वह उसे असंवैधानिक घोषित करके रद्द कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि संसद द्वारा बनाया गया कोई भी कानून

  • संविधान के अनुच्छेदों का उल्लंघन न करे

  • नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित न करे

  • लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ढांचे को नुकसान न पहुंचाए

लेकिन यह फैसला रातोंरात नहीं होता। इसके लिए एक न्यायिक प्रक्रिया होती है जिसमें याचिकाकर्ताओं को यह साबित करना होता है कि कानून संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 29 और 30 का उल्लंघन कर रहा है। फैसला जो भी हो, इसका असर देश की सांविधानिक व्यवस्था, धार्मिक संस्थाओं और अल्पसंख्यक अधिकारों पर दूरगामी होगा।

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