KNEWS DESK- भव्य दीपोत्सव के बीच जहां अयोध्या में रोशनी और श्रद्धा की बेमिसाल झलक देखने को मिली, वहीं इस आयोजन की राजनीतिक परतों में कुछ खामोशियाँ भी सुर्खियों में रहीं। उत्तर प्रदेश सरकार के दोनों उपमुख्यमंत्री — केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक — दीपोत्सव 2025 में शामिल नहीं हुए, जिससे सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है।
उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इस संबंध में एक पत्र जारी कर कहा कि उन्हें “अपरिहार्य कारणों” से अयोध्या दौरा रद्द करना पड़ा। वहीं, ब्रजेश पाठक की ओर से किसी आधिकारिक बयान की पुष्टि नहीं हुई, लेकिन सूत्रों के मुताबिक वे पूर्व निर्धारित व्यस्तताओं के चलते शामिल नहीं हो सके।
इससे पहले उम्मीद जताई जा रही थी कि सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में राज्य की पूरी कैबिनेट अयोध्या में दीपोत्सव में मौजूद रहेगी। परन्तु, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भी अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया, जिससे इस विषय पर अटकलें और तेज हो गईं।
डिप्टी सीएम की गैरमौजूदगी पर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने एक बार फिर तीखा व्यंग्य किया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा “भाजपा में डबल इंजन ही नहीं, इंजन से डबल डिब्बे भी टकरा रहे हैं। उस भाजपा से क्या उम्मीद करना, जो वर्चस्ववादी सोच के अहंकार में डूबी है और अपनों की ही सगी नहीं है।”
अखिलेश यादव ने यह भी कटाक्ष किया कि जनता पूछ रही है क्या “उत्तर प्रदेश भाजपा सरकार में उप मुख्यमंत्री के दोनों पद समाप्त कर दिए गए हैं?”
सपा अध्यक्ष ने अयोध्या से जुड़े पीडीए (पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक) समाज की भावनाओं की ओर भी इशारा किया। उन्होंने बिना नाम लिए आरोप लगाया कि अयोध्या के एक पीडीए वर्ग के सांसद को दीपोत्सव कार्यक्रम में आमंत्रित न करना भाजपा की सामाजिक उपेक्षा का संकेत है। उन्होंने कहा कि इससे समाज में गहरा आक्रोश और आहत भाव है।
रामनगरी में रिकॉर्ड स्तर पर दीप जलाए गए, सरयू आरती में विश्व कीर्तिमान बना और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विभिन्न समुदायों के साथ मिलकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया। परंतु डिप्टी सीएम और राज्यपाल की अनुपस्थिति ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि क्या उत्तर प्रदेश की डबल इंजन सरकार के भीतर दरारें उभर रही हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह केवल कार्यक्रमों की व्यस्तता हो सकती है, लेकिन लगातार तीसरे साल किसी ना किसी वरिष्ठ नेता की अनुपस्थिति को लेकर सवाल उठना यह दर्शाता है कि अयोध्या जैसे प्रतीकात्मक आयोजनों को लेकर सत्ता संतुलन के संकेत नजर आने लगे हैं।