बिहार की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा का निधन, छठ पूजा से पहले AIIMS में ली अंतिम सांस

KNEWS DESK-   बिहार की प्रसिद्ध गायिका और भारतीय लोक संगीत की अद्वितीय आवाज़, शारदा सिन्हा, का मंगलवार रात दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में निधन हो गया। वह 75 वर्ष की थीं और पिछले कुछ वर्षों से कैंसर से संघर्ष कर रही थीं। शारदा सिन्हा का निधन छठ पूजा के पहले दिन नहाय-खाय के मौके पर हुआ, जिससे उनकी विदाई ने पूरे देश को गहरे शोक में डुबो दिया है।

छठ पूजा की आवाज़ की अंतिम विदाई

शारदा सिन्हा का नाम छठ पूजा के गीतों के साथ जुड़ा हुआ था। उनका गायन इस पवित्र पर्व का अभिन्न हिस्सा बन चुका था। उनके द्वारा गाए गए गीत “नहाय-खाय”, “उग हो सूरज देव” और “कहाँ से आई सूरजवा” जैसे भक्ति गीत हर घर में गाए जाते थे, और इन गीतों ने बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के लोगों के दिलों में विशेष स्थान बना लिया था। शारदा सिन्हा की गायन शैली ने लोक संगीत को एक नया आयाम दिया, और वह लोक गायन की सबसे बड़ी प्रतीक बन गईं।

उनके निधन के साथ ही भारतीय लोक संगीत और खासतौर पर छठ पूजा के गीतों का एक सुनहरा युग समाप्त हो गया है। उनके गायन में वह शक्ति और सरलता थी, जो हर किसी को आकर्षित करती थी, और उनकी आवाज़ में एक अजीब सा जादू था जो हर दिल को छू जाता था।

कैंसर से जूझते हुए बिताए साल

शारदा सिन्हा ने 2017 में कैंसर से जूझने की खबर साझा की थी, और इसके बाद से उनकी सेहत में उतार-चढ़ाव आते रहे थे। उनके बेटे अंशुमन सिन्हा ने हाल ही में बताया था कि उनकी मां की तबियत काफी नाजुक हो गई थी, और वह वेंटिलेटर पर थीं। अस्पताल में भर्ती होने से पहले भी वह अपनी बीमारी से लगातार लड़ाई लड़ रही थीं और उम्मीद जताई थी कि वह जल्द ठीक हो जाएंगी।

पिछले कुछ दिनों से शारदा सिन्हा की हालत और भी बिगड़ गई थी। 5 नवंबर को बेटे अंशुमन ने बताया था कि उनकी मां की हालत काफी गंभीर है और वह ICU में भर्ती हैं। शारदा सिन्हा के स्वास्थ्य में गिरावट के बाद उन्होंने वेंटिलेटर पर जाने की सूचना दी थी, और सभी से प्रार्थना करने की अपील की थी।

शारदा सिन्हा का योगदान और संगीत यात्रा

शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत 1980 के दशक में की थी और जल्द ही वह बिहार की लोक गायिका के रूप में प्रसिद्ध हो गईं। उन्होंने हिंदी और भोजपुरी सिनेमा में भी गाने गाए, लेकिन उनका सबसे बड़ा योगदान छठ पूजा के गीतों में था। उनके गीत न केवल पूजा की धार्मिकता को व्यक्त करते थे, बल्कि उनमें ग्रामीण जीवन की सरलता और सुंदरता भी बखूबी झलकती थी।

उनके साथियों और परिवार वालों ने उन्हें हमेशा एक महान गायिका, एक सशक्त महिला और एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में याद किया। शारदा सिन्हा को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था, जिनमें पद्म भूषण पुरस्कार भी शामिल है।

अंतिम समय और परिवार का समर्पण

शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमन सिन्हा ने अपने मां के स्वास्थ्य को लेकर पूरी ईमानदारी से मीडिया को जानकारी दी थी। 4 नवंबर को उन्होंने स्पष्ट किया था कि उनकी मां वेंटिलेटर पर हैं और उनकी स्थिति काफी गंभीर है। इस कठिन समय में अंशुमन ने प्रार्थना की अपील की थी और अपने परिवार की तरफ से शारदा सिन्हा के इलाज में जुटे डॉक्टरों और अस्पताल कर्मचारियों का आभार व्यक्त किया था।

उनके निधन से एक युग का समापन हुआ है, और उनकी अद्भुत आवाज़ हमेशा भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित रहेगी। शारदा सिन्हा की यादें उनके गीतों के माध्यम से हमेशा हमारे साथ रहेंगी।

शारदा सिन्हा की विरासत

शारदा सिन्हा ने भारतीय संगीत को जो अमूल्य योगदान दिया, वह कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उनकी आवाज़ ने न केवल बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को छठ पूजा के दौरान आशीर्वाद दिया, बल्कि पूरे भारत में लोक संगीत के प्रति सम्मान और श्रद्धा को भी जागृत किया।

उनकी आवाज़ को सुनने का अनुभव हर किसी के लिए अविस्मरणीय रहेगा, और उनके गीतों में बसी दिव्यता हमे हमेशा याद दिलाती रहेगी कि संगीत केवल एक कला नहीं, बल्कि आत्मा को छूने वाला अनुभव है।

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