KNEWS DESK- सुप्रीम कोर्ट ने बाल पोर्नोग्राफी से संबंधित मामलों में सोशल मीडिया मध्यस्थों, जैसे फेसबुक और व्हाट्सएप, को उचित सावधानी बरतने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि इन्हें न केवल आपत्तिजनक सामग्री को हटाना होगा, बल्कि पॉक्सो अधिनियम के तहत पुलिस को ऐसी सामग्री की तुरंत रिपोर्ट भी करनी होगी।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने स्पष्ट किया कि अगर किसी मध्यस्थ ने उचित सावधानी नहीं बरती और पॉक्सो के प्रावधानों का पालन नहीं किया, तो वह आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत सुरक्षा का दावा नहीं कर सकता। इसके साथ ही, मध्यस्थ को तीसरे पक्ष के डेटा के प्रसारण में संलग्न नहीं होना चाहिए।
पुलिस को सूचना देने का आदेश
कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को बाल दुर्व्यवहार और शोषण से संबंधित अपराधों की सूचना नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रेन (एनसीएमईसी) और विशेष किशोर पुलिस इकाई या स्थानीय पुलिस को भी देनी होगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसी भी तरह की गैरकानूनी गतिविधि को तुरंत रोका जा सके, यह जानकारी आवश्यक है।
ज़िम्मेदारी का बोध
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि सोशल मीडिया मध्यस्थ केवल समझौता ज्ञापन के तहत निर्दिष्ट आवश्यकताओं का पालन करके अपने दायित्वों से मुक्त नहीं हो सकते। पॉक्सो अधिनियम के तहत उनके पास रिपोर्टिंग का दायित्व है और उन्हें ऐसे मामलों में उचित कार्रवाई करनी होगी।
यौन शिक्षा पर अदालत का ध्यान
सुप्रीम कोर्ट ने युवाओं के लिए यौन शिक्षा के महत्व पर भी प्रकाश डाला। अदालत ने कहा कि यौन शिक्षा पश्चिमी अवधारणा नहीं है और इसे भारतीय समाज में समझने और स्वीकारने की आवश्यकता है। कोर्ट ने एक व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रम के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन की भी सिफारिश की, ताकि युवाओं को सहमति और शोषण के प्रभावों के बारे में सही जानकारी दी जा सके।
ये भी पढ़ें- अरविंद केजरीवाल का बड़ा आरोप, कहा- ‘केंद्र सरकार और BJP मुझे तोड़कर NDA में…’