मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का पारा उस समय चढ़ गया जब उसे पता चला कि साढ़े दस साल पहले दिए गए आदेश पर भी अमल नहीं हो सका है। दरअसल हाईकोर्ट ने भोपाल गैस ट्रेजेडी रिलीफ एंड रिहेबिलेशन डिपार्टमेंट को आदेश दिया था कि “गैस कांड के सभी पीड़ितों का रिकॉर्ड डिजीटल किया जाए।” मामले की सुनवाई के दौरान अदालत को पता चला कि “आदेश अभी तक लंबित है तो फिर क्या था, जजों का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। तुरंत रजिस्ट्री को आदेश जारी किया गया कि भोपाल गैस ट्रेजेडी रिलीफ एंड रिहेबिलेशन डिपार्टमेंट के सेक्रेट्री पर कंटेंप्ट का एक्शन हो।”
जस्टिस शील नागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि “केवल नेशनल इनफोर्मेटिक सेंटर (NIC) को ही नहीं बल्कि राज्य सरकार को भी रिकॉर्ड डिजीटल करने का काम करना था।” कोर्ट ने NIC की तरफ से पेश वकील को भी तीखी फटकार लगाई। कोर्ट का कहना था इनको ये भी नहीं पता कि “रिकॉर्ड डिजीटाइज और कंप्यूटर में चढ़ाने में फर्क होता है। कोर्ट ने रजिस्ट्री को आदेश दिया कि वो अवमानना के तहत अफसरों को नोटिस भेजे। 17 मार्च को उनके जवाबों पर सुनवाई की जाएगी।”
भोपाल गैस त्रासदी का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए क्यूरेटिव पिटीशन में मौतों की संख्या 5,295 और घायलों का आंकड़ा 5,27,894 बताया गया है। 2011 में दायर क्यूरेटिव पटीशन में यूनियन कार्बाइड कंपनी से और 7413 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा गया।
आपको बता दें कि 2 दिसंबर 1984 की रात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में गैस लीक होना शुरू हुई थी। 3 तारीख लगते ही ये हवा जहरीली के साथ जानलेवा भी हो गई। यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के लीक होने से ये हादसा हुआ। गैस के लीक होने की वजह थी टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाना। इससे टैंक में दबाव बन गया और वो खुल गया। उसके बाद टैंक से वो गैस निकली जिसने हजारों की जान ले ली। भारी तादाद में लोग विकलांग भी हो गए। मुआवजे के लिए लोग आज भी हाथ पैर मार रहे हैं।