KNEWS DESK – बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को बदलापुर में दो नाबालिग लड़कियों पर स्कूल में हुए यौन उत्पीड़न को बेहद चौंकाने वाला बताया और कहा कि लड़कियों की सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
एफआईआर दर्ज करने में देरी के लिए पुलिस को भी कड़ी फटकार
आपको बता दें कि जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और पृथ्वीराज चव्हाण की बेंच ने कहा कि घटना की जानकारी होने के बावजूद रिपोर्ट न करने के लिए स्कूल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। जजों ने एफआईआर दर्ज करने में देरी के लिए पुलिस को भी कड़ी फटकार लगाई। हाई कोर्ट ने ठाणे जिले के बदलापुर में 12 और 13 अगस्त को स्कूल के शौचालय में दो चार साल की नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण की घटना का स्वतः संज्ञान लिया है।
मामले में एफआईआर 16 अगस्त को दर्ज की गई थी
कोर्ट के पेश किए गए दस्तावेजों के अनुसार मामले में एफआईआर 16 अगस्त को दर्ज की गई थी और आरोपी को 17 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। दोनों जजों की बेंच ने कहा कि जब तक जनता विरोध और आक्रोश के साथ सड़कों पर नहीं उतरी, तब तक पुलिस ने कुछ नहीं किया।
कोर्ट ने पूछा कि जब तक जनता का गुस्सा नहीं फूटता, पुलिस आगे नहीं बढ़ेगी क्या। क्या राज्य सरकार लोगों में इस कदर आक्रोश होने तक कोई कदम नहीं उठाएगी। पीठ ने कहा कि यह देखकर हैरानी हुई कि बदलापुर पुलिस ने मामले की ठीक से जांच नहीं की। जजों ने कहा कि “ऐसे गंभीर मामले जहां तीन और चार साल की छोटी बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न किया गया। पुलिस इसे इतने हल्के में कैसे ले सकती है।”
कोर्ट ने कहा, अगर स्कूल सुरक्षित जगह नहीं हैं तो बच्चे क्या करें? तीन और चार साल के बच्चे ने क्या किया? यह बिल्कुल चौंकाने वाला है।
बेंच ने कहा, जिस तरह से बदलापुर पुलिस ने मामले को संभाला, उससे कोर्ट बिल्कुल खुश नहीं है। हम केवल यह देखना चाहते हैं कि पीड़ित लड़कियों को न्याय मिले और यही वह चीज है जिसमें पुलिस को भी दिलचस्पी लेनी चाहिए।
जजों ने कहा, “पुलिस सुनिश्चित करे कि पीड़ितों और उनके परिवारों को हरसंभव सहायता दी जाए। पीड़ितों को और अधिक परेशान नहीं किया जाना चाहिए। इस मामले में लड़कियों ने शिकायत की है, ऐसे कई मामले हो सकते हैं, जिन पर ध्यान नहीं दिया गया हो।”
अदालत ने कहा, “लड़कियों के परिवारों को पुलिस से सहयोग मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। सबसे पहले पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी। स्कूल के अधिकारी चुप थे। इससे लोग आगे आने से घबराते हैं। लोगों को पुलिस व्यवस्था या न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं खोना चाहिए। अगर लोगों को सड़कों पर उतरना पड़ा, तो भविष्य के बारे में सोचें।”