इलाहाबाद महाकुंभ 2025: अतिरंजित आंकड़ों की हकीकत

KNEWS DESK,  45 करोड़ लोगों के स्नान का दावा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल इलाहाबाद के महाकुंभ में 45 करोड़ लोग स्नान करेंगे। 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाले इस कुम्भ में छह शाही स्नान हैं। पहला शाही स्नान 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा पर और आखिरी 26 फरवरी को शिवरात्रि के दिन होगा। इन 44 दिनों में 45 करोड़ लोगों के स्नान की बात कुछ अविश्वसनीय सी लगती है।

आंकड़ों का विश्लेषण देश की 140 करोड़ की आबादी में 110 करोड़ हिंदू हैं। इनमें से 30 करोड़ लोग सनातन परंपरा का पालन नहीं करते। शेष लोगों में से भी सभी को कुम्भ स्नान में रुचि हो, यह जरूरी नहीं। मकर संक्रांति के दिन 3.5 करोड़ लोगों के स्नान का दावा स्वयं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने किया है।

मुख्यमंत्री का दावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि मौनी अमावस्या (29 जनवरी) के दिन 10 करोड़ लोग स्नान करेंगे। साथ ही, उनका अनुमान है कि 26 फरवरी तक कुल 45 करोड़ लोग स्नान कर लेंगे। यह आंकड़ा अतिशयोक्तिपूर्ण लगता है। हालांकि, यह सच है कि उत्तर प्रदेश सरकार के व्यापक प्रचार ने इस बार कुम्भ स्नान में रुचि बढ़ाई है।

कुंभ का ऐतिहासिक महत्व

प्राचीन भारत में मेलों की परंपरा कुम्भ मेला सदियों से भारतीय समाज का अभिन्न हिस्सा रहा है। प्राचीन काल में जब परिवहन के साधन नहीं थे, तब भी लोग बड़ी संख्या में इस मेले में आते थे।

कुम्भ का वर्णन कुम्भ स्नान का उल्लेख ऋग्वेद के छठे मंडल और अथर्ववेद में मिलता है। महाभारत में भीष्म पितामह द्वारा गंगा-यमुना के संगम में स्नान का सुझाव दिया गया है। हालांकि, कुम्भ का पहला प्रमाण चीनी यात्री ह्वेनसांग के वृत्तांत (643 ईस्वी) में मिलता है।

ह्वेनसांग का वृत्तांत ह्वेनसांग ने लिखा है कि सम्राट हर्षवर्धन हर छह साल बाद प्रयाग आते थे और अपनी संपत्ति का दान करते थे। उन्होंने 74 दिनों तक दान किया और अंत में अपना मुकुट भी दान कर दिया।

आंकड़ों का वैज्ञानिक विश्लेषण

स्नान क्षेत्र और संख्या 2025 के कुम्भ में स्नान के लिए 40 वर्ग किमी का क्षेत्र निर्धारित है। यदि एक व्यक्ति को एक वर्ग मीटर जगह मिले तो भी 4 करोड़ वर्ग मीटर में 3.5 करोड़ लोग स्नान नहीं कर सकते। एक मिनट में औसत स्नान के हिसाब से भी यह संख्या 40-50 लाख तक सीमित होगी।

प्राकृतिक सीमाएं त्रिवेणी क्षेत्र को इस बार बढ़ा कर ढाई किमी किया गया है। हालांकि, नावों की सीमित संख्या और संगम स्थल तक पहुंचने में कठिनाई के कारण सभी लोगों का संगम स्नान करना संभव नहीं।

कुंभ के आयोजन की चुनौतियां

प्रबंधन की सीमाएं कुंभ में करोड़ों की संख्या को संभाल पाना प्रशासन के लिए चुनौती है। यातायात प्रबंधन और संगम स्थल तक पहुंचने की व्यवस्था सीमित है।

संख्या के भ्रम कुंभ में जाने वाले अधिकतर लोग त्रिवेणी संगम में स्नान करना चाहते हैं, लेकिन अधिकांश को तट पर ही स्नान करना पड़ता है। वास्तविक संख्या का आकलन करना कठिन है, क्योंकि अतिरंजना और भ्रम व्याप्त है।

निष्कर्ष

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का अद्भुत आयोजन है। हालांकि, आंकड़ों में अतिरंजना से बचना चाहिए और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। सही योजना और प्रबंधन से इस आयोजन को सफल बनाया जा सकता है।