आईआईटी मद्रास में ‘अग्निशोध’ का शुभारंभ, सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने ऑपरेशन सिंदूर पर किया विशेष संबोधन

KNEWS DESK- भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने आज आईआईटी मद्रास में भारतीय सेना अनुसंधान प्रकोष्ठ (IARC) ‘अग्निशोध’ का उद्घाटन किया। यह पहल रक्षा क्षेत्र में तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है। इसका उद्देश्य भारतीय सेना के जवानों और अधिकारियों को एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग, साइबर सुरक्षा, क्वांटम कंप्यूटिंग, वायरलेस संचार और मानवरहित प्रणालियों जैसे आधुनिक व उभरते तकनीकी क्षेत्रों में दक्ष बनाना है।

इस अवसर पर जनरल द्विवेदी ने कहा, “तकनीक-सक्षम बल ही भविष्य की सुरक्षा रणनीति की रीढ़ बनेगा। ‘अग्निशोध’ जैसे प्लेटफॉर्म सैन्य और अकादमिक क्षेत्र के बीच सेतु बनकर भारत को एक वैश्विक रक्षा प्रौद्योगिकी केंद्र बना सकते हैं।”

अपने संबोधन में जनरल द्विवेदी ने हाल ही में चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने इसे भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक “सैद्धांतिक बदलाव और रणनीतिक परिपक्वता” का प्रतीक बताया।

उन्होंने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर एक खुफिया-आधारित, सुनियोजित अभियान था, जिसमें पारंपरिक युद्ध के तरीकों से अलग सोचकर काम किया गया। जनरल द्विवेदी ने इसे “ग्रे जोन ऑपरेशन” बताते हुए कहा, “यह शतरंज के खेल जैसा था — जहां न हम दुश्मन की चालों को पूरी तरह जानते थे, न ही अपनी अगली चालें तय थीं, लेकिन रणनीति, धैर्य और सूझबूझ से हमने शह और मात का खेल खेला।”

जनरल द्विवेदी ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुई आतंकी घटना के बाद की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 23 अप्रैल को तीनों सेना प्रमुखों ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ बैठक की। उन्होंने बताया, “यह पहली बार था जब हमने राजनीतिक स्तर पर इतनी स्पष्टता, आत्मविश्वास और खुली छूट देखी। हमें कहा गया कि आप तय करें कि क्या करना है। इससे हमारी निर्णय क्षमता मजबूत हुई और सैनिकों का मनोबल ऊँचा हुआ।”

उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन के तहत नौ प्रमुख आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया, जिनमें से सात पर सफलता से कार्रवाई की गई। 29 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई बैठक को उन्होंने निर्णायक क्षण बताया।

“ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य मिशन नहीं था, यह एक भावनात्मक जुड़ाव भी था, जिसने पूरे देश को एकजुट किया,” जनरल द्विवेदी ने कहा। उन्होंने बताया कि देशवासियों की प्रतिक्रिया यही थी — “आपने इसे क्यों रोका?” जिससे पता चलता है कि यह अभियान जनसामान्य के दिलों में भी एक स्थान बना चुका था।

अपने संबोधन के अंत में जनरल द्विवेदी ने आईआईटी मद्रास के शिक्षकों और छात्रों की अकादमिक उत्कृष्टता की सराहना की। उन्होंने कहा कि “राष्ट्र निर्माण केवल सीमाओं की रक्षा से नहीं, बल्कि प्रयोगशालाओं और कक्षाओं से भी होता है। ‘अग्निशोध’ जैसे केंद्र इसके प्रमाण हैं।”