ICT की मौत की सज़ा के बाद बड़ा सवाल, क्या भारत शेख हसीना को सौंपेगा?

KNEWS DESK- बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास में पिछले वर्ष जो घटनाएँ शुरू हुईं, उन्होंने न सिर्फ ढाका को हिला दिया बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को भी एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया। आरक्षण सुधारों के विरोध से शुरू हुआ छात्र आंदोलन कुछ ही दिनों में एक राष्ट्रव्यापी विद्रोह में बदल गया। कई स्वतंत्र रिपोर्टों के अनुसार, इस हिंसा में 1,200–1,400 तक मौतें, 20,000 से ज्यादा घायल और हजारों छात्रों की गिरफ्तृतियाँ दर्ज हुईं—और 23 दिनों तक पूरा डिजिटल ढांचा ठप रहा।

सरकार की कठोर कार्रवाई और सेना के तटस्थ हो जाने के बाद सत्ता समीकरण बदल गए। अगस्त 2024 में शेख हसीना देश छोड़कर भारत पहुँच गईं, जहाँ उन्हें सुरक्षा एजेंसियों ने “Negative Security Shield” के रूप में गोपनीय संरक्षण दिया। अब ढाका के International Crimes Tribunal-1 (ICT-1) ने उन्हें क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी के आरोपों में मौत की सज़ा सुना दी है लेकिन असली सवाल यह है कि क्या भारत उन्हें वापस सौंपेगा?

17 नवंबर को ICT-1 ने हसीना को निम्न आरोपों के आधार पर दोषी ठहराया। प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हवाई हमले की मंज़ूरी। घनी आबादी वाले इलाकों में एयर-टार्गेटिंग ऑपरेशन। बड़े पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन। अभियोजन पक्ष ने एक कथित कॉल रिकॉर्डिंग का हवाला दिया जिसमें हसीना यह कहते हुए सुनाई देती हैं—“मेरे खिलाफ दर्ज केस मुझे मारने का लाइसेंस देते हैं।” अदालत ने इसे अभियुक्त के पहचान-आधारित दमन का प्रमाण मानते हुए मौत की सज़ा सुना दी।

हसीना ने इस फैसले को राजनीतिक प्रतिशोध, कंगारू कोर्ट, और सत्ता से बेदखल करने की साजिश बताया है। साफ़ तौर पर नहीं। भारतीय कानून विदेशी अदालतों के फैसलों को स्वतः लागू नहीं करता। जब तक भारत की अदालतें उस फैसले का न्यायिक परीक्षण न करें, वह भारत में बेअसर रहता है। इसका मतलब भारत में रह रहीं शेख हसीना पर ICT-1 की मौत की सज़ा का कोई कानूनी प्रभाव नहीं।