बिहार में वोटर लिस्ट विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया अंतिम चरण में, 42 लाख नाम अब भी लंबित

KNEWS DESK- बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की प्रक्रिया अब अपने अंतिम सप्ताह में प्रवेश कर चुकी है और राज्य चुनाव आयोग इस कार्य को अंतिम रूप देने की तैयारी में जुटा हुआ है। अब तक 96 प्रतिशत से अधिक नामांकन फॉर्म जमा हो चुके हैं, लेकिन करीब 42 लाख वोटर्स अब भी सूची में शामिल किए जाने का इंतजार कर रहे हैं।

चुनाव आयोग के शनिवार को जारी नवीनतम अपडेट के अनुसार, इस पुनरीक्षण प्रक्रिया में 11,000 से अधिक ऐसे वोटर्स सामने आए हैं जिन्हें ‘पता नहीं लगने योग्य’ (Not Traceable) की श्रेणी में रखा गया है। ये वे वोटर्स हैं जो अपने रजिस्टर किए गए पते पर नहीं मिले और न ही उनके बारे में पड़ोसियों को कोई जानकारी है। अधिकारियों के अनुसार, यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि इन मामलों में कई बार तो संबंधित पते पर कोई मकान या भवन तक मौजूद नहीं था।

सूत्रों का दावा है कि यह समूह संभवतः बिहार के बाहर रहने वाले अवैध प्रवासियों का हो सकता है, जिनमें बांग्लादेशी या रोहिंग्या नागरिकों की आशंका जताई जा रही है। इन्हें बिहार की वोटर लिस्ट में फर्जी पहचान के जरिये जोड़ा गया हो सकता है, जिससे चुनावों में फर्जी मतदान की गुंजाइश बनती है।

एसआईआर की जांच में यह भी सामने आया कि करीब 41.6 लाख वोटर्स, जो कुल वोटर्स का 5.3% हैं, तीन अनिवार्य बीएलओ विजिट्स के बावजूद अपने पते पर नहीं पाए गए। इनमें से 14.3 लाख (1.8%) वोटर्स संभावित रूप से मृत हैं, जबकि 19.7 लाख (2.5%) स्थायी रूप से कहीं और स्थानांतरित हो चुके हैं। इसके अलावा 7.5 लाख (0.9%) वोटर्स ऐसे हैं जिनका नाम एक से अधिक स्थानों पर दर्ज है।

चुनाव आयोग के अधिकारियों का कहना है कि मृत वोटर्स के नाम अगर सूची से नहीं हटाए गए, तो यह फर्जी मतदान का बड़ा रास्ता खोल सकता है। इसी तरह, दो जगह नाम दर्ज कराने वाले वोटर्स से भी चुनावी पारदर्शिता पर खतरा मंडरा सकता है।

बिहार में कुल 7.9 करोड़ वोटर्स पंजीकृत हैं, जिनमें से 95.92 प्रतिशत को अब तक ड्राफ्ट लिस्ट में शामिल किया जा चुका है। शेष बचे करीब 32 लाख वोटर्स के सत्यापन और नामांकन के लिए अभी पांच दिन शेष हैं। चुनाव आयोग का लक्ष्य है कि प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और त्रुटिरहित हो।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इन संदिग्ध और फर्जी नामों को समय रहते सूची से नहीं हटाया गया, तो आगामी चुनावों की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। विशेष रूप से जिन क्षेत्रों में मार्जिन बेहद कम होता है, वहां ये फर्जी वोट निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।