KNEWS DESK- तीन तलाक के खिलाफ साल 2019 में बनाए गए अपने कानून का केंद्र सरकार ने बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। केंद्र सरकार द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे में कहा गया है कि तीन तलाक प्रथा मुस्लिम महिलाओं के लिए घातक है।
केंद्र ने कहा कि अदूरदर्शी रिवायत से बचाव के लिए एक ऐसे कानूनी प्रावधान की आवश्यकता थी कि मुस्लिम पतियों को बलपूर्वक तुरंत तलाक देने से रोका जा सके|तीन तलाक की प्रथा ना सिर्फ सामाजिक संस्था विवाह के लिए घातक है, बल्कि यह मुस्लिम महिलाओं की स्थिति को बहुत दयनीय बनाता है|
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, ‘सर्वोच्च अदालत ने लगातार यह कहा कि कानून कैसा हो, यह तय करना कोर्ट का नहीं विधायिका का काम है| कानून कैसा होना चाहिए, यह तय करना अदालत का काम नहीं है| यह वही तय करती है कि देश के लोगों के लिए क्या अच्छा है और क्या अच्छा नहीं है| अपराध को परिभाषित करना और उसके दंड विधान को निर्धारित करना ही ‘सरकार’ का मुख्य कार्य है| अदालत तो कानून की समीक्षा करने और लागू करने में आ रही दिक्कतों का निराकरण करने के लिए है| कानून कैसा हो यह तय करना अदालत का काम नहीं है|
हलफनामा इस महीने की शुरुआत में समस्त केरल जमियथुल उलेमा द्वारा दायर किया गया था, जो खुद को “प्रख्यात सुन्नी विद्वानों का एक संघ” बताता है| अन्य बिंदुओं के अलावा, याचिकाकर्ता ने मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 को असंवैधानिक बताया| याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अधिनियम मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिसमें वे अधिकार भी शामिल हैं जो भारतीय नागरिकों को कानून के समक्ष समानता की गारंटी देते हैं और धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाते हैं|