राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल का नाम ‘गणतंत्र मंडप’ हुआ, पहले थ्रोन रूम था

KNEWS DESK-  राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल और अशोक हॉल का नाम बदल दिया गया है| अब से दरबार हॉल को ‘गणतंत्र मंडप’ और अशोक हॉल को ‘अशोक मंडप’ के तौर पर जाना जाएगा| राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नाम में हुए बदलाव पर खुशी जाहिर की है|राष्ट्रपति भवन की तरफ से गुरुवार (24 जुलाई) को जारी एक प्रेस रिलीज में इसकी जानकारी दी गई है| हाल के समय में कई प्रमुख इमारतों और सड़कों के नाम भी बदले गए हैं|

Rashtrapati Bhavan Halls Renamed: राष्ट्रपति भवन में बदल गया सबकुछ, जानें क्या हुआ बदलाव

राष्ट्रपति भवन ने बयान जारी करते हुए कहा, “राष्ट्रपति भवन, भारत के राष्ट्रपति का कार्यालय और निवास, राष्ट्र का प्रतीक और लोगों की अमूल्य विरासत है| इसे लोगों के लिए अधिक सुलभ बनाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं| राष्ट्रपति भवन के माहौल को भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और लोकाचारों को प्रतिबिंबित करने वाला बनाने का लगातार प्रयास किया गया है|

बयान में आगे कहा गया, “राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति भवन के दो महत्वपूर्ण हॉलों ‘दरबार हॉल’ और ‘अशोक हॉल’ का नाम बदलकर क्रमशः ‘गणतंत्र मंडप’ और ‘अशोक मंडप’ रखने पर प्रसन्न हैं|

‘दरबार हॉल’ में राष्ट्रीय पुरस्कारों के प्रेजेंटेशन जैसे महत्वपूर्ण समारोहों और कार्यक्रमों का आयोजन होता है| दरबार शब्द का जुड़ाव भारतीय शासकों और अंग्रेजों की अदालतों और सभाओं से है, जहां वे अपने कार्यक्रम आयोजित करते थे| प्रेस रिलीज में कहा गया कि भारत के गणतंत्र बनने के बाद इसकी प्रासंगिकता खत्म हो गई| गणतंत्र की अवधारणा प्राचीन काल से भारतीय समाज में गहराई से निहित है, इसलिए दरबार हॉल का ‘गणतंत्र मंडप’ नाम बिल्कुल उपयुक्त है|

दरबार हॉल की कहानी…

राष्ट्रपति भवन में दरबार हॉल (गणतंत्र मंडप) वो जगह है, जहां राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाते हैं और भारत में हुए कई ऐतिहासिक बदलावों का गवाह रहा है| जिस दरबार हॉल का नाम अब गणतंत्र मंडप किया गया है, उसका पहले नाम थ्रोन रूम हुआ करता था| ये वो ही हॉल है, जहां भारत के आजाद होने के बाद 15 अगस्त 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार ने शपथ ली थी|

वहीं, जब 1977 में राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद का निधन हुआ तो इसे भारत के पांचवे राष्ट्रपति को श्रद्धांजलि देने के लिए इस्तेमाल किया गया था| 17 साल में बने राष्ट्रपति भवन को वायसराय के लिए बनाया गया था और ब्रिटिश शासन काल के दौरान दरबार हॉल में वायसराय का दरबार लगता था|

अशोक हॉल बना अशोक मंडप

बयान में कहा गया, “अशोक हॉल” मूल रूप से एक बॉलरूम था| ‘अशोक’ शब्द का अर्थ है वह व्यक्ति जो ‘सभी दुखों से मुक्त’ हो या ‘किसी भी दुख से रहित’ हो| साथ ही, ‘अशोक’ सम्राट अशोक को संदर्भित करता है, जो एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का प्रतीक है| भारत गणराज्य का राष्ट्रीय प्रतीक सारनाथ से अशोक का सिंह सिर है| यह शब्द अशोक वृक्ष को भी संदर्भित करता है जिसका भारतीय धार्मिक परंपराओं के साथ-साथ कला और संस्कृति में भी गहरा महत्व है|’अशोक हॉल’ का नाम बदलकर ‘अशोक मंडप’ करने से भाषा में एकरूपता आएगी और अंग्रेजीकरण के निशान मिटेंगे, साथ ही ‘अशोक’ शब्द से जुड़े प्रमुख मूल्यों को भी बरकरार रखा जाएगा|

राष्ट्रपति भवन

दरबार हॉल को राष्ट्रपति भवन का सबसे भव्य हॉल माना जाता है| ये हॉल राष्ट्रपति भवन के सेंट्रल डोम के ठीक नीचे है और इसमें तीन तरफ से एंट्री है| इसकी दीवारें 42 फुट ऊंची हैं, जिन पर सफेद मार्बल लगा हुआ है| इस हॉल में लगा एक झूमर इसकी सुंदरता को और भी खास कर देता है, क्योंकि यह बेल्जियम कांच से बना हुआ है और काफी बेशकीमती हैं|

इस हाल में काफी मार्बल लगा है, जिसमे सफेद मार्बल मकराना और अलवर से, ग्रे मार्बल मारवाड़ से, हरा मार्बल बड़ौदा और अजमेर से, गुलाबी मार्बल अलवर, मकराना और हरिबाग से लाया गया था| इसके अलावा एक चॉकलेट कलर का मार्बल भी है, जो इटली से मंगाया गया था|

आप जब भी दरबार हॉल में एंट्री करेंगे या फिर तस्वीर देखेंगे तो आपको एक भगवान बुद्ध की मूर्ति दिखाई देगी,जो पांचवी सदी की प्रतिमा है| इस मूर्ति के सामने ही राष्ट्रपति की कुर्सी रखी गई है| पहले यहां वायसराय और उनकी वाइफ के लिए कुर्सी रखी गई थी| इसके अलावा हॉल में कई पेटिंग लगी हैं, जो देश के राजनेताओं की है|

About Post Author