सुप्रीम कोर्ट ने AIMIM का पंजीकरण रद्द करने की याचिका खारिज की, याचिकाकर्ता को दी नई याचिका दायर करने की छूट

KNEWS DESK-  ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) का पंजीकरण रद्द करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका को कोर्ट ने सुनवाई से इनकार करते हुए खारिज कर दिया। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की अनुमति दी और उन्हें नई याचिका दायर करने की छूट भी दी, जिसमें राजनीतिक दलों के पंजीकरण से संबंधित नियमों में बदलाव की मांग की जा सके।

यह याचिका तिरुपति नरसिम्हा मुरारी नाम के व्यक्ति ने दायर की थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने चुनाव आयोग में दर्ज अपने उद्देश्य में लिखा है कि पार्टी मुस्लिम समुदाय की सेवा करना चाहती है। याचिकाकर्ता के अनुसार, यह उद्देश्य भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए का उल्लंघन करता है, इसलिए पार्टी का पंजीकरण अमान्य घोषित किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेगा। दिल्ली हाई कोर्ट पहले ही इस याचिका को खारिज कर चुका है, जिसमें AIMIM का पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को देश में राजनीतिक दलों की मान्यता से जुड़े नियमों में कोई समस्या है, तो वह इस विषय पर अलग से विस्तृत याचिका दायर कर सकते हैं।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील विष्णु शंकर जैन ने अदालत के समक्ष दलील दी कि AIMIM का घोषित उद्देश्य संविधान की मूल भावना — विशेषकर धर्मनिरपेक्षता — के विरुद्ध है। उनका तर्क था कि कोई भी राजनीतिक दल जो केवल किसी एक धर्म या समुदाय की सेवा का उद्देश्य रखता हो, उसे राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं दी जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सीधा AIMIM के खिलाफ कार्रवाई से इनकार जरूर है, लेकिन इसने एक बड़े संवैधानिक सवाल की ओर इशारा किया है — क्या देश में धर्म आधारित राजनीति करने वाले दलों की मान्यता पर पुनर्विचार होना चाहिए?

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