नए साल का जश्न फीका पड़ने की आशंका, तुरंत डिलीवरी ठप, इन मांगों को लेकर गिग वर्कर्स हड़ताल पर

KNEWS DESK- एक तरफ नया साल दस्तक देने को तैयार है, वहीं दूसरी ओर गिग वर्कर्स की हड़ताल ने ऑनलाइन डिलीवरी सिस्टम की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है। इसका सीधा असर 10 मिनट में सामान पहुंचाने के दावों पर पड़ सकता है। स्विगी, जोमैटो, ब्लिंकिट, जैप्टो, अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से जुड़े गिग वर्कर्स ने आज से एक बार फिर हड़ताल का ऐलान किया है।

हड़ताल की मुख्य वजह डिलीवरी पेमेंट में कटौती और काम के घंटे बढ़ाए जाना बताया जा रहा है। गिग वर्कर्स का कहना है कि बीते कुछ महीनों में पेमेंट स्ट्रक्चर में बदलाव के चलते उनकी आमदनी 50 प्रतिशत तक घट गई है। पहले जहां 7–8 घंटे काम करने पर करीब 1,000 रुपये की कमाई हो जाती थी, वहीं अब उतने ही समय में 400 से 500 रुपये ही मिल पा रहे हैं।

TV9 भारतवर्ष से बातचीत में गिग वर्कर्स ने बताया कि कंपनियां मनमाने तरीके से डिलीवरी पेमेंट, इंसेंटिव और बोनस घटा रही हैं। हालात ऐसे हैं कि कई वर्कर्स 17–18 घंटे तक काम करने को मजबूर हैं, फिर भी इनकम संतोषजनक नहीं है। ऊपर से कम समय में ज्यादा डिलीवरी का दबाव रहता है। ट्रैफिक जाम या किसी कारण देरी होने पर ग्राहकों के दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। अगर जल्दबाजी में कोई हादसा हो जाए तो न तो इलाज की सुविधा मिलती है और न ही इंश्योरेंस का कोई सहारा होता है।

गिग वर्कर्स का कहना है कि पहले यह काम पसंद से किया जाता था, लेकिन अब यह मजबूरी बन चुका है। 25 दिसंबर को भी हड़ताल की गई थी, लेकिन समस्या सुलझने के बजाय और बढ़ गई। वर्कर्स का आरोप है कि आवाज उठाने पर टीम लीडर्स की ओर से आईडी ब्लॉक करने और पुलिस कार्रवाई की धमकी तक दी गई। हड़ताल के बाद ऑर्डर भी कम हो गए हैं। जहां पहले 5 घंटे में औसतन 15 ऑर्डर मिलते थे, अब यह संख्या घटकर 7–8 रह गई है। इंसेंटिव भी तय नहीं रह गए हैं।

गिग वर्कर्स की प्रमुख मांग है कि दूरी और समय के हिसाब से उचित डिलीवरी पेमेंट तय की जाए, फेयर इंसेंटिव दिया जाए और बीमा व हेल्थ बेनिफिट्स की सुविधा मिले। उनका कहना है कि असंगठित क्षेत्र होने और सभी वर्कर्स में एकजुटता की कमी का फायदा कंपनियां उठा रही हैं। वहीं कुछ ऐप कंपनियों का तर्क है कि नए पेमेंट मॉडल परफॉर्मेंस आधारित हैं और उनका उद्देश्य डिलीवरी नेटवर्क को ज्यादा प्रभावी बनाना है।

देश में करीब 80 लाख से ज्यादा गिग वर्कर्स डिलीवरी, लॉजिस्टिक्स और राइड-शेयरिंग सेक्टर में काम कर रहे हैं। रोजगार का यह मॉडल लचीला जरूर है, लेकिन सामाजिक सुरक्षा और न्यूनतम वेतन को लेकर अब भी स्पष्ट कानूनी ढांचा नहीं है।

गिग वर्कर्स की हड़ताल का असर सिर्फ ग्राहकों तक सीमित नहीं है, बल्कि दुकानदार भी मुश्किल में हैं। गुरुग्राम समेत कई शहरों में फूड और ग्रोसरी डिलीवरी सेवाएं प्रभावित हुई हैं। गुरुग्राम में वैराइटी ऑमलेट की दुकान चलाने वाले दीपक ने बताया कि उनकी 70–80 प्रतिशत बिक्री ऑनलाइन ऑर्डर से होती थी, लेकिन हड़ताल के चलते उनकी बिक्री में करीब 80 प्रतिशत की गिरावट आई है। कई बार खाना तैयार रह जाता है, लेकिन डिलीवरी बॉय नहीं पहुंचता।

वहीं ग्राहकों का कहना है कि त्योहारों और नए साल के मौके पर वे ऑनलाइन डिलीवरी पर निर्भर रहते हैं। अगर 31 दिसंबर को भी हड़ताल जारी रही, तो परेशानी और बढ़ सकती है। लोगों का सवाल है कि जब ऐप्स ग्राहकों से पूरी डिलीवरी फीस वसूलती हैं, तो गिग वर्कर्स को उनका हक क्यों नहीं मिलता।

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