KNEWS DESK- 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए भीषण बम धमाकों के 19 साल बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने सोमवार को सभी 12 दोषियों को निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया। यह फैसला जस्टिस अनिल किलोर और एस. जी. चांडक की पीठ ने सुनाया।
इस मामले में 2015 में निचली अदालत ने 12 में से 5 दोषियों को फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन अब हाई कोर्ट ने कहा है कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे आरोप सिद्ध करने में विफल रहा है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गवाहों के बयान अविश्वसनीय और परस्पर विरोधाभासी हैं। 100 दिन बाद किसी टैक्सी ड्राइवर या यात्री द्वारा किसी आरोपी को पहचानना अवास्तविक है। बम, हथियार और नक्शों की बरामदगी अप्रासंगिक है क्योंकि अभियोजन पक्ष बम के प्रकार की पहचान तक नहीं कर सका। MCOCA के तहत दर्ज किए गए इकबालिया बयान जबरन लिए गए प्रतीत होते हैं और इन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता।
12 में से एक आरोपी कमल अंसारी की मौत पहले ही 2022 में COVID‑19 के कारण जेल में हो चुकी है। बाकी 11 आरोपियों को आज बरी कर दिया गया। सभी आरोपियों ने येरवडा, अमरावती, नासिक और नागपुर जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।
11 जुलाई 2006 को मुंबई की सात लोकल ट्रेनों में महज 11 मिनट के भीतर सात बम धमाके हुए थे। इस आतंकी हमले में 189 लोगों की जान गई और 824 से अधिक लोग घायल हुए थे। बमों में RDX का इस्तेमाल हुआ था और यह भारत के सबसे भयावह आतंकी हमलों में से एक था। मुंबई ATS ने नवंबर 2006 में इस मामले में चार्जशीट दाखिल की थी।
हाई कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी नेता किरीट सोमैया ने कहा “इस फैसले से गहरा दुख और झटका लगा है। मैंने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि मामले की फिर से जांच हो और सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाए। मुंबई को न्याय मिलना चाहिए।”
दोषियों के वकीलों ने शुरुआत से ही यह दावा किया था कि उनके मुवक्किलों से टॉर्चर करके जबरन कबूलनामे लिए गए हैं और उन्हें झूठे मामलों में फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि MCOCA के तहत दर्ज बयान अवैध हैं और अदालत में स्वीकार्य नहीं होने चाहिए।
इस मामले की सुनवाई 2015 में हाई कोर्ट में शुरू हुई थी, जब राज्य सरकार ने फांसी की सजा की पुष्टि की याचिका दाखिल की थी। साथ ही दोषियों ने भी अपनी सजा के खिलाफ अपील की थी। बीते 9 वर्षों में 11 से ज्यादा पीठें बदलीं, लेकिन 2024 में एक विशेष बेंच का गठन हुआ, और जनवरी 2025 में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।