शुभांशु शुक्ला की ISS से वापसी कैसे होगी? कौन सा रॉकेट और स्पेसक्राफ्ट होगा इस्तेमाल ?

KNEWS DESK-  भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। वे भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री बने हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर कदम रखा और वहां कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम दिया। अब जब उनका मिशन पूरा हो चुका है, तो सभी की निगाहें उनकी पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी पर टिकी हैं।

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल के जरिए ISS से पृथ्वी पर लौटेंगे। यह वही कैप्सूल है जो 25 जून 2025 को फाल्कन-9 रॉकेट के जरिए अमेरिका के नासा केनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च हुआ था।

ड्रैगन कैप्सूल पूरी तरह ऑटोमेटेड और पुन: उपयोग योग्य है। वापसी की प्रक्रिया को “अनडॉकिंग” कहा जाता है, जिसमें स्पेसक्राफ्ट ISS से अलग होता है और पृथ्वी की ओर यात्रा शुरू करता है।

वापसी का समय-

  • अनडॉकिंग का समय: 14 जुलाई 2025, भारतीय समयानुसार शाम 4:35 बजे

  • वापसी का अनुमानित समय: 15 जुलाई 2025, दोपहर 3:00 बजे

कैप्सूल के पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय इसकी गति लगभग 28,000 किमी/घंटा होती है। हीट शील्ड इसे घर्षण से उत्पन्न गर्मी से बचाती है। इसके बाद, पैराशूट्स की मदद से स्प्लैशडाउन होता है—या तो अटलांटिक महासागर या मेक्सिको की खाड़ी में। फिर स्पेसएक्स की रिकवरी टीम यात्रियों को बाहर निकालती है।

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अपने मिशन के दौरान 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए, जिनमें 7 भारतीय और 5 नासा द्वारा प्रायोजित प्रयोग शामिल थे। अंतरिक्ष में मूंग और मेथी के बीज उगाने का प्रयोग, जो भविष्य में चंद्रमा और मंगल पर खेती के लिए अहम माना जा रहा है। टीम ISS से 263 किलोग्राम वैज्ञानिक डेटा और नमूने लेकर लौट रही है। यह मिशन भारत के लिए न केवल तकनीकी सफलता है, बल्कि मानव अंतरिक्ष विज्ञान में योगदान का भी प्रतीक है।

अंतरिक्ष से लौटने के बाद शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम को विस्तृत मेडिकल चेकअप और पुनर्वास कार्यक्रम से गुजरना होगा। अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने से शरीर में मांसपेशियों की कमजोरी, हड्डियों का घनत्व कम होना, रक्त परिसंचरण और संतुलन में बदलाव जैसे प्रभाव पड़ते हैं। उन्हें इनसे उबरने के लिए विशेष देखरेख में रखा जाएगा। इसके बाद, वह अपने अनुभव और वैज्ञानिक परिणामों को साझा करेंगे, जो भारत के आगामी ‘गगनयान’ मिशन के लिए उपयोगी साबित होंगे।

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