KNEWS DESK- पूरे देश को झकझोर देने वाले अंकिता भंडारी हत्याकांड में आज कोटद्वार की अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है। तीनों आरोपियों – पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता – को अदालत ने दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसके साथ ही अदालत ने सरकार को आदेश दिया है कि पीड़ित पक्ष को ₹4 लाख का मुआवजा दिया जाए।
यह फैसला एक करीब 2 साल 8 महीने लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आया है। इस दौरान एसआईटी द्वारा कुल 97 गवाह बनाए गए, जिनमें से 47 गवाहों की कोर्ट में पेशी हुई। अभियोजन पक्ष की सख्त पैरवी और साक्ष्यों के आधार पर कोर्ट ने सभी आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धाराएं 302 (हत्या), 201 (सबूत मिटाना), 354A (यौन उत्पीड़न) और अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम के तहत दोषी पाया।
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक की रहने वाली 19 वर्षीय अंकिता भंडारी ऋषिकेश के पास स्थित वनतारा रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के पद पर कार्यरत थी।
18 सितंबर 2022 को वह रहस्यमयी तरीके से लापता हो गई थी। 5 दिन बाद उसका शव ऋषिकेश की चीला नहर से बरामद हुआ।
पुलिस की जांच में यह सामने आया कि रिजॉर्ट में रुके एक वीआईपी मेहमान को “एक्स्ट्रा सर्विस” देने के लिए अंकिता पर दबाव डाला गया था, जिसे उसने साफ तौर पर इंकार कर दिया। इससे नाराज होकर रिजॉर्ट मालिक पुलकित आर्य – जो बीजेपी के पूर्व नेता का बेटा है – ने अपने दो कर्मचारियों के साथ मिलकर अंकिता को नहर में धक्का देकर मार डाला। पुलकित आर्य ने मामले को छुपाने के लिए खुद गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस की तफ्तीश ने जल्द ही पूरा सच उजागर कर दिया।
इस हाई-प्रोफाइल मामले में राज्य सरकार ने DIG रैंक की अधिकारी रेणुका देवी की अध्यक्षता में SIT का गठन किया था। जांच के बाद 500 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की गई। इस दौरान पीड़ित परिवार ने कई बार सरकारी वकील बदलने की मांग की और अंततः मुकदमे की पैरवी में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। राज्य सरकार की ओर से अंकिता के परिजनों को ₹25 लाख की आर्थिक सहायता और सरकारी नौकरी भी दी गई थी।
आज कोर्ट के फैसले के साथ ही अंकिता को न्याय की पहली किरण मिली है। हालांकि अंकिता के परिवार और प्रदेश भर में लोगों की मांग थी कि दोषियों को फांसी की सजा मिले, लेकिन कोर्ट ने उम्रकैद का निर्णय सुनाते हुए इसे एक दृष्टांतपूर्ण सजा माना है। कोर्ट परिसर में फैसले के समय सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम थे, और बड़ी संख्या में आम लोग, सामाजिक कार्यकर्ता और मीडिया संस्थान मौजूद रहे।
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