वक्फ संशोधित कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, कपिल सिब्बल ने SC में दीं दलीलें

KNEWS DESK –  सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ संशोधित कानून 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर लगातार तीसरे दिन सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने याचिकाओं पर अंतरिम राहत को लेकर फैसला आरक्षित रख लिया है। अब अदालत जल्द ही इस पर आदेश जारी करेगी।

सिब्बल ने कानून को बताया ‘गैर-लोकतांत्रिक’

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम की कई धाराओं को चुनौती दी। उन्होंने विशेष रूप से धारा 3C का उल्लेख करते हुए कहा कि जैसे ही जिला अधिकारी (DO) यह जांच शुरू करता है कि कोई वक्फ संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, वक्फ की स्थिति स्वतः निलंबित हो जाती है। सिब्बल ने तर्क दिया कि इस प्रक्रिया में वक्फ न्यायाधिकरण में सुनवाई से पहले ही संपत्ति की स्थिति समाप्त हो जाती है, जो कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है।

सिब्बल ने कहा कि 1954 से 2013 तक सिर्फ एक राज्य में वक्फ सर्वेक्षण पूरा हुआ है। उत्तर प्रदेश में कोई भी वक्फ पंजीकृत नहीं है। उन्होंने आशंका जताई कि यदि यह कानून जारी रहता है, तो “कल्पना कीजिए कि लखनऊ का इमामबाड़ा तक खत्म हो सकता है”।

सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें

सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि नया कानून मुतवल्लियों द्वारा संपत्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक सुरक्षात्मक उपाय है।अनुसूचित जाति और जनजाति के मुसलमानों को वक्फ संपत्ति समर्पित करने से रोकने वाला प्रावधान समाज में समानता बनाए रखने के उद्देश्य से लाया गया है। उन्होंने कहा कि वक्फ की स्थिति को चुनौती देने वाली याचिकाएं अदालत को गुमराह कर रही हैं और कानून को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है।

कपिल सिब्बल ने अपनी बहस में कहा कि वक्फ इस्लाम का आंतरिक हिस्सा है और इसका संरक्षण संविधान द्वारा दिए गए धार्मिक अधिकारों का भी हिस्सा होना चाहिए। वहीं, तुषार मेहता ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “वक्फ भले ही इस्लामिक अवधारणा हो, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है। इसलिए इसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत असीमित संरक्षण नहीं मिल सकता।”

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां

मुख्य न्यायाधीश ने बहस के दौरान कहा, “यदि कोई संपत्ति सरकारी भूमि है, तो इसपर समुदाय के अधिकार कैसे तय किए जा सकते हैं?” सिब्बल ने इसका जवाब देते हुए कहा कि “कई बार समुदाय सरकार से जमीन मांगता है, जैसे कब्रिस्तान के लिए, और सरकार वह जमीन देती है। लेकिन 200 साल बाद सरकार वही जमीन वापस मांग ले, तो यह उचित नहीं है।”