रक्षाबंधन की तरह इस बार जन्माष्टमी के त्योहार को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में कोई 18 अगस्त को जन्माष्टमी बता रहे हैं तो कोई 19 अगस्त को. ऐसे में किस दिन जन्माष्टमी मनानी चाहिए और किस दिन जन्माष्टमी का व्रत करना चाहिए, इस संबंध में पंडितों का कहना है की जन्माष्टमी को लेकर किसी भी तरह के भ्रम में रहने की आवश्यकता नहीं है. जन्माष्टमी का त्योहार गृहस्थ लोगों के लिए 18 अगस्त है और वहीं मठ मंदिरों में और जहां पर भी भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव मनाया जाएगा वहां पर 19 अगस्त को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा
भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात्रि में अष्टमी के दिन 12 बजे हुआ था. ऐसे में जो व्रत रखते हैं उन्हें अष्टमी तक व्रत रखने का ही ग्रंथों में विधि-विधान है और 12 बजे पूजा करके अपने व्रत को खोलना चाहिए. इसीलिए 18 अगस्त के दिन व्रत की जन्माष्टमी गृहस्थ जीवन वाले मना सकते हैं. वहीं जब अगले दिन गोकुल में श्री कृष्ण के जन्म की सूचना गई थी तो जन्माष्टमी का त्योहार मनाया गया था. इसीलिए मठ मंदिरों इत्यादि में अष्टमी के अगले दिन जन्माष्टमी मनाई जाती है. इसलिए सभी मठ मंदिरों में संतों द्वारा 19 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी
जन्माष्टमी के पूजा के विधि विधान पर जो लोग व्रत रखते हैं उन्हें जन्माष्टमी के दिन केवल फलाहार ही करना चाहिए. इसी के साथ जब वह व्रत खोलें उसमें भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृत का स्नान कराकर छप्पन भोग या फिर मिठाई का भोग लगाना चाहिए. इससे भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं. इसी के साथ माखन मिश्री का भी भोग जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को लगाना चाहिए. क्योंकि माखन मिश्री भगवान श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय है