क्षेत्रीय पार्टियां बिगाड़ सकती है सियासी गणित

मणिपुर से कठोर कानून सशस्त्र बल अधिनियम को हटाने की मांग को लेकर लगातार 16 वर्षो तक अनशन कर चुकीं इरोम शर्मिला ने राज्य के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आम लोग इस पार्टी को कितना समर्थन देते हैं। जिससे यहां का चुनाव काफी रोचक होने वाला है। पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में 4 और 8 मार्च को वोटिंग होनी है। इन चुनावों के लिए सभी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है।

राज्य में 15 साल से सत्ता पर काबिज़ कांग्रेस एक बार फिर सरकार बनाने का प्रयास कर रही है तो वही कांग्रेस मुक्त मणिपुर का नारा देकर बीजेपी सत्ता पर आने की रणनीति बना रही है। 60 सीटों वाली इस विधानसभा में इन दोनों ही पार्टियों के बीच मुख्य मुकाबला है मगर वहाँ क्षेत्रीय दल भी काफी सक्रिय है। वे कांग्रेस और बीजेपी दोनों का ही समीकरण बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं।

मणिपुर पीपुल्स पार्टी भी इस बार 39 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है। एमपीपी दो बार राज्य में सरकार बना चुकी है। पिछले चुनाव में पार्टी का एक भी उम्मीदवार विधायक नहीं बन पाया था। इस बार एमपीपी को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा द्वारा गठित एनपीपी भी पहली बार 30 उम्मीदवारों के साथ चुनावी दंगल में उतरेगी।

नागा पीपुल्स फ्रंट भी इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी का सिरदर्द बढ़ा सकती है। पार्टी की नागा इलाके में अच्छी पकड़ है और वह बड़ा उलटफेर करने का दम रखते है। ऐसे में देखने वाली बात ये है कि राज्य में नई सरकार के गठन में क्षेत्रीय दलों की भूमिका कितनी अहम होगी। इलेक्शन डेस्क। केन्यूज इंडिया।

 

 

About Post Author