यूपी में बंसल के मायने
यूपी में भाजपा के महामंत्री संगठन सुनील बंसल अचानक ही महत्वपूर्ण नहीं हुए हैं। बंसल की एंट्री 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले उस वक्त के यूपी प्रभारी बनाए गए अमित शाह के सहयोगी के तौर पर हुई थी। सफलता के लिए रणनीति के जमीनी अमल में सुनील बंसल की भूमिका भी अहम मानी गई। इसका इनाम भी मिला और यूपी में 73 सीटें जिताने के इनाम में उन्हें यूपी भाजपा का संगठन महामंत्री बना दिया गया। बंसल ने आते ही शहरी पार्टी के तौर पर चर्चित भाजपा संगठन की संरचना में नीचे तक बदलाव किए। संगठन के विस्तार के लिए नए प्रयोगों के सूत्रधार बने। बूथ से लेकर पन्ना प्रमुखों की संरचना कागजों से निकलकर धरातल पर उतरी। 2017 के विधानसभा चुनाव में 325 सीटों की शानदार विजय के लिए तय रणनीतियों की सफलता में भी बंसल एक अहम कारक माने गए। भाजपा में आने से पहले राजस्थान के रहने वाले सुनील बंसल ने छात्रों के बीच काम करने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद(एबीवीपी) से काम शुरू किया था। वह एबीवीपी के सह संगठन मंत्री रहे। भाजपा में आने के बाद उन्होंने पार्टी में नए चेहरों को तैयार करने व जिम्मेदारी देने की कार्यसंस्कृति को भी बढ़ावा दिया। लिहाजा भाजपा के विस्तार व प्रभाव के साथ ही यूपी में सुनील बंसल का भी प्रभाव और विस्तार बढ़ता गया।
फैसलों की है अहम धुरी
भाजपा में संगठन महामंत्री का पद अरसे से महत्वपूर्ण रहा है। इस पद पर नियुक्ति आरएसएस की राय से की जाती है। पूर्णकालिक प्रचारकों को संगठन महामंत्री की जिम्मेदारी देने का प्रचलन है। भाजपा के लोग यह भी मानते हैं कि संगठन महामंत्री ही केंद्रीय नेतृत्व की आंख-नाक-कान होता है, इसलिए उनका हर जगह प्रभाव रहता है। बंसल से पहले राकेश जैन, नागेंद्र नाथ भी संग्ठन महामंत्री रहे। लेकिन पहले सरकार या संगठन के फैसलों में उनके इतने दखल की नजीर कम मिलती है। हालांकि, माना जाता है कि इसके पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि तब भाजपा का इतना विस्तार नहीं था। नई भाजपा के विस्तार में सुनील बंसल को भी साझीदार माना जाता है, इस वजह से उनका कद भी बढ़ा। इसका सीधा असर सरकार और संगठन के फैसलों में भी साफ दिखता है। खासकर 2017 की पहली भाजपा सरकार में बंसल की छाप साफ नजर आई थी। सरकार की दूसरी पारी में भी मतभेद व समन्वय के सवालों के बीच भी कई चेहरों के चयन को बंसल से ही जोड़ा गया। टिकटों के वितरण से लेकर संगठनात्मक चेहरों के चयन तक के अहम फैसले दिल्ली में होते हैं, वहां भी उनकी राय हमेशा अहम रही है। इसलिए सुनील बंसल के जाने और रहने के तार बहुत से चेहरों के सियासी भविष्य के बनने- बिगड़ने से भी जुड़ते हैं। यही वजह है कि उनकी भूमिका बदलने की खबरें बहुतों की धड़कनें बढ़ा देती हैं।
नई भूमिका को लेकर मंथन
सुनील बंसल 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले से यूपी में भाजपा का काम देख रहे हैं। 2014, 2017, 2019 और 2022 के चुनावों के साथ वह पंचायत और नगर निकाय चुनाव में भी भाजपा की जीत के रणनीतिकारों में रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि अब आरएसएस भी उनका इस्तेमाल किसी नई जगह पर करना चाहता है। वह खुद भी केंद्रीय नेतृत्व को यह बता चुके हैं कि यूपी में उनकी जिम्मेदारी पूरी हो चुकी है। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व अभी इसे लेकर खामोश है। मंथन भी चल रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले उन्हें यहां से हटाया जाए या नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी समेत 80 लोकसभा सीटों वाली यूपी से उन्हें हटाना सहज रहेगा या नहीं? इस पर भी गंभीरता से विचार किया जा रहा है। फिलहाल कोई निर्णय नहीं हो सका है।