देहरादून- गर्मी शहर का पारा दिन- प्रतिदिन आसमान छू रहा है। गर्मी से लोगों का बुरा हाल है। ऐसे में लोगों को बिजली कटौती का सामना भी करना पड़ रहा है। जिससे लोगों के बीच आक्रोश का माहौल है।
वहीं ऊर्जा निगम पावर कट सिस्टम को लेकर अब लगातार सवाल उठ रहे हैं। उपभोक्ताओं ने ऊर्जा निगम के खिलाफ विद्युत नियामक आयोग में शिकायत की है।
लोगों का कहना है कि संकट के समय में सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की कटौती की जाती है। इसके बावजूद जब शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली के रेट और सुविधाएं समान है तो सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में ही कटौती क्यों जा रही है?
नियम के अनुसार, ऊर्जा निगम बिजली संकट के समय सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्रों में कटौली शुरू करता है। उसके बाद फर्नेस उद्योग में कटौती होती है। इसके बाद बडे़ तथा छोटे शहरों के बाहरी क्षेत्रों में कटौती की जाती है। इसके साथ ही बडे़ शहरो के कोर जोन और वीआईपी समेत ही वीवीआईपी क्षेत्रों में कटौती न के बराबर ही की जाती है वहीं मई में सबसे अधिक बिजली कटौती फर्नेस उद्योगों में हुई है।
उसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में कटौती हुई है। वहीं ऊर्जा निगम ने लिखित तौर पर दावा किया है कि बड़े और छोटे शहरों में कटौती न के बराबर ही हुई है। ऐसे में उपभोक्ता ऊर्जा निगम की व्यवस्थाओं पर सवाल उठा रहे हैं। फर्नेस उद्योग ने तो लिखित शिकायत भी की है। उद्योग से जुड़े पवन अग्रवाल ने यूपीसीएल पर भेदभाव के आरोप भी लगाए है। उनका कहना है कि जब बिल समान रूप से लिए जा रहे हैं तो रूड़की सर्किल के विभागों को कटौती से मुक्त क्यों रख गया है?
इस संबंध में नियामक आयोग के सचिव नीरज सती ने बताया कि स्टील उद्योग ने भेदभाव का आरोप लगाया है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में ऊर्जा निगम से जवाब मांगा गया है और इसके साथ ही बिजली कटौती को लेकर पूर्व निर्धारित व्यवस्था को बनाने को कहा गया है। शिकायत पर पलटवार करते हुए यूपीपीसीएल के एमडी अनिल कुमार ने दावा किया कि कटौती में भेदभाव की शिकायत गलत है। लोड के लिहाज से ही रोस्टिंग की जाती है। पूरा प्रयास है कि कटौती की पूर्व सूचना उपलब्ध कराई जाए इस व्यवस्था को मजबूत किया जाएगा।