कर्नाटक। कर्नाटक विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आ चुका है। हालंकि इस बार कांग्रेस को धमाकेदार जीत मिली है। कर्नाकट में बहुमत का आंकड़ा 113 है। तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने 135 सीटें हासिल की है। जिसके बाद से तीन नामों की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। पहला नाम सिद्धारमैया, दूसरा कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार एवं तीसरा चुनावी रणनीतिकार सुनील कनुगोलू का। दो लोगों के बारे में तो आप जानते ही होंगे, लेकिन आज हम बताएंगे कि सुनील कनुगोलू कौन हैं? इन्होंने कैसे कर्नाटक में कांग्रेस को जीत दिलाई? आप भी जानिए क्या है कारण…
आइए जानते हैं कौन हैं सुनील कनुगोलू?
जानकारी के लिए आपको बता दें कि सुनील कानूनगोलू का जन्म कर्नाटक के बल्लारी जिले में हुआ था। यहीं से उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की। एक रिपोर्ट के अनुसार, बल्लारी से वह पहले चेन्नई और फिर बेंगलुरु शिफ्ट हो गए। तेलुगु भाषी होने के बावजूद कनुगोलू ने अपनी जड़ें कर्नाटक में जमा ली हैं। प्रशांत किशोर की तरह ही सुनील भी चुनावी रणनीतियां तैयार करते हैं।
कांग्रेस के साथ काम करने से पहले सुनील ने भाजपा, डीएमके और अन्नाद्रमुक के लिए काम किया है। वह 2017 के जल्लीकट्टू विरोध के दौरान तमिल गौरव और द्रविड़ियन मॉडल के पहलुओं के पीछे भी थे, जिससे डीएमके को आक्रामक भाजपा का मुकाबला करने में मदद मिली।
प्रशांत किशोर ने पिछले वर्ष 26 अप्रैल को पार्टी में शामिल होने के कांग्रेस के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। जिसके बाद सोनिया गांधी ने सुनील कनुगोलू को पार्टी की चुनावी रणनीतियों को तैयार करने के लिए फाइनल किया।
पिछले वर्ष मई में कनुगोलू को टास्क फोर्स 2024 के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। इस टास्क फोर्स में कनुगोलू के अलावा पी चिदंबरम, मुकुल वासनिक, जयराम रमेश, केसी वेणुगोपाल, अजय माकन, प्रियंका गांधी वाड्रा और रणदीप सुरजेवाला जैसे प्रमुख नेता शामिल थे। बताया जाता है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का आइडिया भी कनुगोलू ने ही दिया था।
सुनील पिछले साल कांग्रेस में शामिल हुए थे। जिसके बाद से वह कई राज्यों में पार्टी के लिए चुनावी रणनीति तैयार कर रहे हैं। और पार्टी को जीत दिलाने में कामयाब होते हुए भी नजर आ रहे हैं। कर्नाटक में चुनाव से पहले सर्वे, फिर उम्मीदवारों का चयन, दूसरी पार्टियों से आने वाले नेताओं को लेकर अध्ययन करना, मुद्दे और चुनाव प्रचार के तरीकों को लेकर सुनील ने काम किया। सुनील के करीबियों के मुताबिक, कर्नाटक से पहले हिमाचल प्रदेश में भी उन्होंने काम किया। जिसके चलते राजनीति में बनायी गई रणनीति सफल हुई।