दिल्ली, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी की सांसदी छीन जाने के बाद जिस प्रवधान के तहत राहुल की सदस्यता को रद्द किया गया है. उस प्रावधान के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. SC में पीआईएल दाखिल करते हुए कहा गया है कि अधिनियम के चैप्टर-III के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय कई कारकों की जांच की जानी चाहिए.
मोदी के सेरनेम पर विवादित टिप्पणी मामले में सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाई. जिसके बाद शुक्रवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता को रद्द कर दिया. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत स्पीकर ने यह कार्रवाई की है. अब दोष साबित होने के बाद किसी जनप्रतिनिधि के ऑटोमैटिक डिस्क्वॉलिफिकेशन के प्रावधान को को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी गई है. इसमें सेक्शन 8(3) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है.
पीआईएल में कहा गया कि चुने हुए प्रतिनिधि (सांसद/विधायक) को सजा का एलान होते ही उनका जन प्रतिनिधित्व यानी सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य हो जाना असंवैधानिक है. याचिका में कहा गया कि अधिनियम के चेप्टर-III के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय आरोपी के नेचर, गंभीरता, भूमिका जैसे कारकों की जांच की जानी चाहिए.
सामाजिक कार्यकर्ता आभा मुरलीधरन ने अपनी याचिका में कहा कि धारा 8(3) अयोग्यता के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा चलाए जाने वाले झूठे राजनीतिक एजेंडे के लिए एक मंच को बढ़ावा दे रही है, इसलिए यह धारा राजनीतिक हित के लिए जनप्रतिनिधि के लोकतांत्रिक ढांचे पर सीधे हमला कर रही है, जिससे देश की चुनावी व्यवस्था में भी अशांति पैदा हो सकती है.
कानून की धारा 8(3) में लिखा है कि अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो तत्काल उसकी सदस्यता चली जाती है और अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाती है. याचिका में कहा गया-“लिली थॉमस मामले में आए फैसले का राजनीतिक दलों में व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए खुले तौर पर दुरुपयोग किया जा रहा है.