पिछले कुछ सालों में LPG गैस सिलेंडर की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं और उस पर मिलने वाली सब्सिडी घटती चली गई। जिसका नतीजा ये हुआ कि आज सब्सिडी और बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमतें लगभग बराबर हो चुकी है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश उपभोक्ता गैस सिलेंडर से नहीं लकड़ी से चूल्हे पर खाना बना रहे है। पिछले साल तक प्रति सिलेंडर सब्सिडी के रूप में 110 रुपए तक मिलते थे। लेकिन दिसंबर 2020 तक 35.50 रुपए रह गई और इस साल मई में घट कर 17.88 रुपए हो गयी। लेकिन अब यह राशि भी महीनों से गैस कनेक्शन धारकों के खाते में नहीं आई है।
वक्त के साथ-साथ कम होती गई सब्सिडी
आप को बता दें कि मिलने वाली सब्सिडी सीधे ग्राहक के खाते में ट्रांसफर की जाती थी। धीरे-धीरे वक्त बीतने के साथ-साथ ये सब्सिडी कम होती गई और फिर धीरे से ही एक दम कम हो गयी। यानी आम लोगों पर महंगाई की दो-तरफा मार पड़ी है। सिलेंडर भी महंगे हुए हैं और सब्सिडी भी नही मिल रही है। जहां गैस सिलेंडर की कीमत इसवक्त 970 रुपये हो गई है। दो साल पहले रसोई गैस सिलेंडर रीफिल करवाने पर करीब 397 रुपये सब्सिडी मिलती थी, लेकिन अब सब्सिडी नहीं मिल रही है। अभी सब्सिडी और नॉन-सब्सिडी दोनों तरह के सिलेंडर की कीमत एक ही हो चुकी है। ऐसे में पेट्रोलियम मंत्रालय का कहना है कि 2020 मई से सब्सिडी वाले और बिना-सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर की कीमत में कोई अंतर नहीं है इसलिए किसी भी ग्राहक को सब्सिडी नहीं दी जा रही है। मौजूदा वक्त में कहा जाए तो सब्सिडी और नॉन सब्सिडी सिलेंडर की कीमत बराबर हो चुकी है। जिससे लोगों को सब्सिडी नहीं मिल रही है। अब एक तरफ जहा एलपीजी की कीमत में 1 जनवरी से छः बार मे कुल 190 रुपये प्रति सिलेंडर की बढ़ोतरी की गयी है तो वही उज्ज्वला योजना का भी बुरा हाल है जिससे ग्रामीण क्षेत्रो में अधिकांश उपभोक्ता गैस सिलेंडर से नहीं लकड़ी से चूल्हे पर भोजन बना रहे। यानी कहा जाए तो लोगों पर महंगाई की दो-तरफा मार है। जहा एक तरफ सिलेंडर को महंगा हो गया तो वही अब सब्सिडी भी नही मिल रही है। जिससे गावों में गरीब तबके के लोग चूल्हे पर भोजन बनाने को मजबूर हैं।