उत्तराखंड में वन भूमि पर संकट, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दिए निर्देश

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट – उत्तराखंड में जंगलों और वन भूमि पर लगातार बढ़ते अवैध कब्जों के बीच अब शासन ने इस दिशा में सख्त कदम उठाया है. सुप्रीम कोर्ट की हालिया कड़ी टिप्पणी के बाद राज्य सरकार हरकत में आई है और ऋषिकेश से जुड़े एक बड़े भूमि प्रकरण की जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन कर दिया गया है. यह समिति वन भूमि पर हुए संभावित अवैध अतिक्रमण, लीज की शर्तों के उल्लंघन और भूमि के मौजूदा उपयोग की स्थिति की जांच कर शासन को रिपोर्ट सौंपेगी. दरअसल, मामला ऋषिकेश क्षेत्र की करीब 2866 एकड़ भूमि से जुड़ा है, जिसे 26 मई 1950 को 99 वर्षों की लीज पर पशु लोक सेवा मंडल संस्थान को दिया गया था. इस लीज की अवधि वर्ष 2049 तक निर्धारित है.आपको बता दें, उत्तराखंड में वन भूमि पर हो रहे अतिक्रमण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और अधिकारियों पर टिप्पणी की थी. सुप्रीम कोर्ट के सख्ती के बाद राज्य सरकार एक्टिव हुई और इस तरह के मामलों की जांच के लिए कमेटी का गठन किया. खास बात यह है कि इस समिति को 15 दिन का वक्त दिया है, जिसमें कमेटी को सभी रिकॉर्ड खंगालते हुए इस भूमि की धरातल पर स्थित और रिकॉर्ड्स के आधार पर रिपोर्ट तैयार करनी होगी. उधर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर न केवल आगे की कार्रवाई की जाएगी, बल्कि सुप्रीम कोर्ट को भी इससे अवगत कराया जाएगा. उत्तराखंड सरकार को सुप्रीम कोर्ट से फटकार पड़ी है. राज्य निवासी अनीता कंडवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि उत्तराखंड सरकार और उसके अधिकारी जंगल की जमीन पर कब्जे को लेकर “मूक दर्शक” बने बैठे हैं. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही संज्ञान लेते हुए केस शुरू किया. जिसको लेकर विपक्षी दलों ने भी सरकार पर वन भूमि पर भूमाफिया करने का गंभीर आरोप लगाया है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदेश की वन भूमि पर तेज़ी से बढ़ रहे अतिक्रमण पर संज्ञान लेते हुए अधिकारियों को तत्काल कदम उठाने के लिए निर्देश दिये है. कि मुख्य सचिव व प्रधान मुख्य वन संरक्षक संयुक्त रूप से जांच समिति बनाये, वहीं प्रदेश मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है, कि जो भी निर्देश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया है. उसपर सरकार अवश्य कार्य करेगी, सरकार का संकल्प है. कि भारत के संविधान को मध्यनजर रखते हुए जिस भी प्रकार का अतिक्रमण हो उसपर कार्रवाई की जाए, मुख्यमंत्री धामी ने बताया अब तक सूचना देकर अतिक्रमण की प्रक्रिया को सरकार द्वारा पूरे करने पर लगभग दस हज़ार एकड़ भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराया गया है. जो राज्य की दृष्टि से बहुत बड़ी उपलब्धि भी है, और जिनके द्वारा भी अतिक्रमण को किया गया है. वह लगातार सरकार के अतिक्रमण हटाने के अभियान को देखकर स्वयं ही अतिक्रमण को हटा भी रहे हैं, यह अभियान लगातार जारी रहेगा, मुख्यमंत्री धामी ने यह भी बताया कि किसी भी प्रकार से देवभूमि के देवत्व और प्रदेश की डेमोग्राफी से खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा। विपक्ष ने सुप्रीम फैसला आने से सरकार पर हल्ला बोला है.

प्रदेश में लगातार सभी राजनैतिक पार्टी जल जंगल को बचाने के लिए जनता से कई वादे करते आये हैं। हर वर्ष सरकार इसको लेकर करोड़ों की धन राशि खर्च करने का दावा भी करती है, लेकिन आज भी कई हेक्टेयर वन भूमि कब्जे में है, यही वजह है कि अब इन वन सम्प्रदायों को बचाने के लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय को ही सरकार से जवाब मांगना पड़ रहा है. वहीं जानकारों की माने तो अवैध मजारों, होटलों, बस्तियों को हटा कर वन भूमि बचाने की बात सरकार कर रही तो आप इससे प्रदेश की जमीनी हकीकत को गंभीरता से समझने की बेहद आवशयकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिहायशी घरों को छोड़कर खाली जमीन पर वन विभाग कब्जा करेगा. इसके बाद कोर्ट ने छुट्टियों के बाद न्यायालय खुलने पर सोमवार को मामले की सुनवाई तय की है. सुप्रीम कोर्ट उत्तराखंड में जंगल की जमीन के एक बड़े हिस्से पर अवैध कब्जे से जुड़ी अनीता कंडवाल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था.वही प्रदेश में हुए एक और वन विभाग के घोटाले को लेकर हाईकोर्ट ने भी सख्ती दिखाई है, मसूरी वन प्रभाग ने वन प्रभाग की सीमा को दर्शाने के लिए कई हजार पिलर लगाए थे. लेकिन लगाए गए पिलरों में से लगभग 7375 पिलर गायब हो गए. यह वनधिकारियों, राजनीतिक लोगों और भूमि माफियाओं के गठजोड़ के चलते हुआ है. अब गायब पिलरों की जगह पर अतिक्रमण हो गया है, जिसकी पुष्टि वन विभाग की रिपोर्ट से भी हुई है. जिसमें पता चला है कि इनमें से अधिकांश पिलर मसूरी और रायपुर रेंज से गायब हुए हैं.ऐसे में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की फटकार के बाद क्या प्रदेश के वन छेत्र से सरकार अतिक्रमण मुक्त करने में कामयाब होगी ये आने वाला वक्त ही तय कर पायेगा|

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