KNEWS DESK- महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर बड़ा मोड़ आता दिख रहा है। लगातार चुनावी झटकों से जूझ रही महाविकास अघाड़ी (MVA) को जहां बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति के सामने सफलता नहीं मिल पाई, वहीं अब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की नजदीकियां नए राजनीतिक समीकरण की ओर इशारा कर रही हैं। बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव से ठीक पहले दोनों ठाकरे भाइयों का साथ आना मुंबई की राजनीति में हलचल मचा रहा है।
15 जनवरी को होने वाले BMC चुनाव से पहले शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) अध्यक्ष राज ठाकरे आज मुंबई में एक मंच पर आने वाले हैं। शिवसेना (UBT) सांसद संजय राउत के मुताबिक, दोनों दलों के बीच गठबंधन की औपचारिक घोषणा आज की जाएगी। उन्होंने संकेत दिए हैं कि बातचीत सहज रही और किसी बड़े अड़चन का सामना नहीं करना पड़ा।
हालांकि हालिया स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति ने 288 में से 207 निकायों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन BMC का मुकाबला अलग माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर उद्धव और राज ठाकरे साथ आते हैं, तो मराठी वोटों का बिखराव रोका जा सकता है—जो अब तक महायुति के लिए फायदेमंद रहा है।
ठाकरे भाइयों की राजनीति का केंद्र हमेशा से “मराठी मानुष” रहा है। मुंबई में मराठी भाषी आबादी करीब 26% है। इसके अलावा मुस्लिम आबादी 15–18% और दलित मतदाता भी निर्णायक भूमिका में हैं। जानकार मानते हैं कि गैर-बीजेपी वोटों का एकजुट होना महायुति के लिए चुनौती खड़ी कर सकता है।
नवंबर 2024 के विधानसभा चुनावों में भले ही MNS को सिर्फ 4% वोट शेयर मिला हो, लेकिन उसका प्रभाव मुंबई के राजनीतिक नक्शे पर साफ दिखता है।
227 BMC वार्डों में से 67 वार्ड ऐसे रहे जहां MNS को मिले वोट जीत के अंतर से ज्यादा थे। इन वार्डों में MVA 39 सीटों पर आगे थी, जबकि महायुति 28 पर। ऐसे में शिवसेना (UBT) और MNS का गठबंधन इन वार्डों में नतीजा पलटने की क्षमता रखता है।
वर्ली, दादर, माहिम, घाटकोपर, विक्रोली और दिंडोशी-मलाड जैसे मराठी बहुल इलाकों में MNS की मौजूदगी मजबूत मानी जाती है। इन क्षेत्रों में MNS उम्मीदवारों को MVA उम्मीदवारों के मुकाबले एक-तिहाई से आधे तक वोट मिले थे। गठबंधन की स्थिति में यह वोट ट्रांसफर निर्णायक साबित हो सकता है।
अगर ठाकरे गठबंधन जमीन पर असर दिखाता है, तो बीजेपी को अपने सहयोगी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना पर ज्यादा निर्भर होना पड़ सकता है—खासकर मुंबई, ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, नासिक, पुणे और नवी मुंबई जैसे मराठी बहुल शहरी इलाकों में।
उद्धव और राज ठाकरे के अलग होने की कहानी भी मराठी अस्मिता से जुड़ी रही है। बाल ठाकरे ने 1966 में इसी मुद्दे पर शिवसेना की नींव रखी थी। 2006 में नेतृत्व और भूमिका को लेकर मतभेद हुए और राज ठाकरे ने अलग होकर MNS बनाई। अब लगभग दो दशक बाद दोनों फिर से साथ आ रहे हैं।
बीजेपी सरकार द्वारा प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले ने ठाकरे भाइयों को एक मंच पर ला खड़ा किया। इसी मुद्दे पर संयुक्त विरोध के बाद यह एहसास हुआ कि नगर निगम चुनावों में साथ उतरना दोनों के लिए राजनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकता है।