KNEWS DESK- हिंदू धर्म के शास्त्रों और पुराणों में माघ मास को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी माना गया है। यह महीना आध्यात्मिक साधना, आत्मशुद्धि और संयम का प्रतीक है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माघ माह में जप, तप, स्नान और दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, यानी ऐसा पुण्य जो कभी समाप्त नहीं होता।
माघ माह 2026 कब से कब तक रहेगा?
दृक पंचांग के अनुसार, साल 2026 में माघ माह की शुरुआत 04 जनवरी से होगी। इसी माह में श्रद्धालु विशेष साधना के रूप में कल्पवास करते हैं, जिसका सबसे बड़ा केंद्र प्रयागराज का त्रिवेणी संगम तट माना जाता है।
कल्पवास की अवधि क्या है?
साल 2026 में कल्पवास की शुरुआत 03 जनवरी से होगी और इसका समापन 01 फरवरी 2026 को माघ पूर्णिमा के दिन होगा। पूर्णिमा तिथि के साथ ही परंपरागत रूप से माघ मास का कल्पवास पूर्ण माना जाता है।
कल्पवास का अर्थ क्या है?
‘कल्प’ का अर्थ होता है एक निश्चित अवधि या कालखंड, जबकि ‘वास’ का अर्थ निवास करना। आध्यात्मिक दृष्टि से कल्पवास वह साधना है, जिसमें व्यक्ति कुछ समय के लिए सांसारिक सुख-सुविधाओं, भोग-विलास और मोह-माया से दूरी बनाकर केवल ईश्वर भक्ति में लीन रहता है। शास्त्रों में इसे गृहस्थ जीवन से वैराग्य की ओर कदम माना गया है।
कब और कैसे शुरू होता है कल्पवास?
परंपरा के अनुसार कल्पवास की शुरुआत पौष माह की पूर्णिमा से मानी जाती है। हालांकि श्रद्धालु अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार 05, 11 या 21 दिनों का भी संकल्प ले सकते हैं। कल्पवास हमेशा विधिवत संकल्प लेकर किया जाता है।
कल्पवास के नियम और विधि
कल्पवास को अत्यंत कठोर और अनुशासित साधना माना जाता है। यह केवल गंगा तट पर रहना नहीं, बल्कि जीवनशैली में पूर्ण परिवर्तन है।
- कल्पवासी नदी के किनारे कुटिया बनाकर निवास करते हैं।
- सांसारिक सुख-सुविधाओं से पूर्ण दूरी रखते हैं।
- दिन में केवल एक बार, स्वयं बनाया सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
- प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में और तीन बार गंगा स्नान कर पूजा-अर्चना करते हैं।
- भूमि पर शयन करते हैं और भोग-विलास का त्याग करते हैं।
- मन, वचन और कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य होता है।
किन बातों का पालन करना जरूरी?
कल्पवास के दौरान नशा, क्रोध, झूठ और कटु वाणी पूर्णतः वर्जित होती है। प्रतिदिन तुलसी पूजा की जाती है। भजन-कीर्तन, संतों का सत्संग और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया जाता है।
माघ माह और कल्पवास केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आत्मसंयम का मार्ग है। जो श्रद्धालु नियमपूर्वक कल्पवास करता है, उसे आध्यात्मिक उन्नति के साथ जीवन में शांति और पुण्य की प्राप्ति होती है।