डिजिटल डेस्क- सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देशभर के सभी हाई कोर्ट्स को निर्देश दिया कि वे अनलॉफुल एक्टिविटी (प्रिवेंशन) एक्ट (UAPA) जैसे कठोर कानूनों के तहत लंबित मामलों की विस्तृत स्थिति की समीक्षा करें। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में, जहां खुद को निर्दोष साबित करने का भार आरोपी पर होता है, वहां न्यायिक प्रक्रिया में देरी गंभीर चिंता का विषय है और हाई कोर्ट्स को पेंडिंग ट्रायल्स का विशेष आकलन करना चाहिए। अदालत ने हाई कोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीशों से कहा है कि वे यह सुनिश्चित करें कि UAPA और इसी तरह के मामलों की सुनवाई के लिए कितनी विशेष अदालतें गठित की गई हैं और वहां सरकारी वकीलों की नियुक्ति की क्या स्थिति है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्याय में देरी, खासकर उन मामलों में जहां आरोपी लंबे समय से जेल में हैं, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बन सकती है।
पांच साल से अधिक मामलों को मिले प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि जिन मामलों में पांच साल से अधिक समय बीत चुका है, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर लिया जाए और उनकी रोजाना सुनवाई कराई जाए, ताकि ट्रायल जल्द से जल्द पूरा हो सके। अदालत ने कहा कि केवल कठोर कानून लागू कर देना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि राज्य की यह जिम्मेदारी भी है कि वह प्रभावी ढंग से मुकदमे की सुनवाई सुनिश्चित करे। ये अहम निर्देश उस समय दिए गए, जब सुप्रीम कोर्ट 2010 के ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस ट्रेन हादसे से जुड़े मामले में कोलकाता हाई कोर्ट द्वारा आरोपियों को दी गई जमानत के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की याचिकाओं पर फैसला सुना रहा था।
जांच और ट्रायल में अनावश्यक देरी न हो- कोर्ट
इस मामले में अदालत ने माना कि हाई कोर्ट ने जमानत देने में त्रुटि की थी, लेकिन घटना को लंबा समय बीत जाने और आरोपियों द्वारा जमानत की शर्तों का दुरुपयोग न किए जाने के चलते इस चरण पर उनकी जमानत रद्द करना उचित नहीं होगा। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब किसी कानून के तहत आरोपी पर उल्टा भार (रिवर्स बर्डन ऑफ प्रूफ) डाला जाता है, तो ऐसे मामलों में राज्य का दायित्व और अधिक बढ़ जाता है। अदालत ने साफ कहा कि राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जांच और ट्रायल में अनावश्यक देरी न हो और मुकदमे को तय समयसीमा में पूरा किया जाए।