लोकसभा में कार्तिगई दीपम विवाद पर हंगामा, अनुराग ठाकुर के आरोपों से गरमाया माहौल, कार्यवाही स्थगित

डिजिटल डेस्क- तमिलनाडु के प्रसिद्ध कार्तिगई दीपम उत्सव पर जारी विवाद आज लोकसभा तक पहुंच गया। शुक्रवार को भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाया और डीएमके सरकार पर मद्रास हाई कोर्ट के आदेश की अवमानना का गंभीर आरोप लगाया। उनके बयान के बाद सदन में भारी हंगामा हुआ, जिसके चलते लोकसभा की कार्यवाही दोपहर 2 बजे तक स्थगित करनी पड़ी।

अनुराग ठाकुर का आरोप—‘डीएमके सरकार सनातन विरोध की प्रतीक बन गई’

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने दावा किया कि तमिलनाडु में डीएमके सरकार कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं कर रही है। उन्होंने कहा, “मदुरै बेंच ने डीएमके सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। आदेश के बावजूद हिन्दू श्रद्धालुओं को कार्तिगई दीपम प्रज्वलित करने नहीं दिया गया। यह सीधी अदालत की अवमानना है।” उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू श्रद्धालुओं पर लाठीचार्ज हुआ और राज्य सरकार योजनाबद्ध तरीके से धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन कर रही है। ठाकुर के इन आरोपों पर डीएमके सांसदों ने तुरंत विरोध जताया और आसन के पास पहुंचकर जोरदार नारेबाजी शुरू कर दी। सदन में लगातार शोर-शराबा देखकर पीठासीन सभापति जगदंबिका पाल ने पहले सांसदों को शांत रहने की अपील की, लेकिन विवाद बढ़ता देख उन्होंने कार्यवाही को दोपहर 2 बजे तक स्थगित कर दिया।

तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची

यह विवाद दरअसल मदुरै के तिरुपरमकुंद्रम स्थित अरुलमिघु सुब्रमणिय स्वामी मंदिर में कार्तिगई दीपम जलाने की अनुमति को लेकर शुरू हुआ। मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने श्रद्धालुओं को पारंपरिक दीप प्रज्वलित करने की अनुमति दी थी। जिला प्रशासन ने इसका विरोध किया, लेकिन हाई कोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट 5 दिसंबर को इस मामले पर सुनवाई करने के लिए पहले ही सहमत हो चुका है।

जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नया विवाद

मामला तब और जटिल हो गया जब डीएमके, कांग्रेस और कई विपक्षी दलों ने इस मामले में आदेश देने वाले जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंपा। विरोधी दलों का आरोप है कि जज के फैसले और उनके आचरण ने “न्यायपालिका की निष्पक्षता और धर्मनिरपेक्षता पर सवाल खड़े किए हैं।” लेकिन इस कदम के खिलाफ देशभर के 50 से अधिक पूर्व जज, वरिष्ठ वकील और न्यायविद खुलकर जस्टिस स्वामीनाथन के समर्थन में आ गए हैं।

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