डिजिटल डेस्क- कांग्रेस के दिग्गज नेता, पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और देश की राजनीति में मर्यादित आचरण के प्रतीक माने जाने वाले शिवराज पाटिल का शुक्रवार सुबह महाराष्ट्र के लातूर जिले में निधन हो गया। 90 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से राजनीतिक जगत में गहरा शोक है। पाटिल न केवल कांग्रेस के वरिष्ठ स्तंभ थे, बल्कि उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष से लेकर राज्यपाल और गृह मंत्री तक कई अहम पदों पर अपनी विशेष पहचान स्थापित की। शिवराज पाटिल का जन्म 12 अक्टूबर 1935 को लातूर जिले के चाकूर गांव में एक साधारण, मेहनतकश परिवार में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई की और फिर जनसेवा की भावना के साथ राजनीति की ओर कदम बढ़ाया। उनका राजनीतिक सफर स्थानीय स्तर से शुरू हुआ, लेकिन उनके व्यवहार, मर्यादा और साफ राजनीतिक छवि ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति तक पहुंचाया।
स्थानीय राजनीति में मजबूत नींव
राजनीति के प्रारंभिक काल में पाटिल ने लातूर नगरपालिकाध्यक्ष के रूप में काम किया। इसके बाद वे 1973 से 1980 तक लातूर ग्रामीण सीट से विधायक रहे। उनकी लोकप्रियता और काम करने की शैली ने उन्हें सीधे दिल्ली की राजनीति में पहुंचाया। शिवराज पाटिल पहली बार 1980 में लोकसभा पहुंचे और लातूर लोकसभा सीट से लगातार सात बार सांसद रहे। यह उनके जनाधार और स्वच्छ छवि का प्रमाण था।
- 1980–1984: पहली बार सांसद
- 1991–1996: लोकसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) बने
- इंदिरा गांधी सरकार में रहे रक्षा राज्य मंत्री
- 2004–2008: भारत के केंद्रीय गृह मंत्री
लोकसभा अध्यक्ष के रूप में पाटिल को व्यापक सम्मान मिला। उनके समय में सदन की कार्यवाही को शालीनता और अनुशासन के साथ चलाने के लिए वे विशेष रूप से प्रशंसा के पात्र रहे।
गृह मंत्री का दौर—चुनौतियों भरा समय
मनमोहन सिंह सरकार में शिवराज पाटिल ने 22 मई 2004 से 30 नवंबर 2008 तक गृह मंत्री का पद संभाला। उनके कार्यकाल में देश को कई सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ा। नक्सल हिंसा, आतंकवादी हमले और सीमाई सुरक्षा संबंधी कई गंभीर घटनाएँ शामिल थीं। लेकिन 26/11 मुंबई आतंकी हमले ने पूरे देश को हिला दिया। इस हमले के बाद सुरक्षा खामियों को लेकर उनकी नीतियों पर सवाल उठे, जिसके बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। गृह मंत्रालय छोड़ने के बाद भी पाटिल ने सार्वजनिक जीवन से दूरी नहीं बनाई। वे आगे चलकर पंजाब और राजस्थान के राज्यपाल बने और संविधान सम्मत, गरिमामय भूमिका निभाने के लिए प्रशंसा प्राप्त की।