आरती की थाली किस दिशा में घुमानी चाहिए? जानें सही विधि, धार्मिक रहस्य और वैज्ञानिक महत्व

KNEWS DESK- हिन्दू पूजा-पद्धति में आरती का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। आरती केवल एक धार्मिक क्रिया भर नहीं होती, बल्कि यह भक्त और भगवान के बीच ऊर्जा, भाव और आस्था का अद्भुत संगम है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आरती करते समय की गई एक छोटी-सी गलती जैसे आरती की थाली को गलत दिशा में घुमाना पूरी पूजा के फल को प्रभावित कर सकती है?

बहुत से लोग अनजाने में इस नियम की अनदेखी कर देते हैं, जबकि इसके पीछे गहरा धार्मिक और वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है। आइए समझते हैं कि आरती किस दिशा में और क्यों घुमानी चाहिए।

आरती की सही दिशा: हमेशा दक्षिणावर्त (Clockwise)

आरती की थाली दक्षिणावर्त दिशा में यानी घड़ी की सुई की दिशा में घुमानी चाहिए। यही दिशा पवित्र मानी गई है और इसी दिशा से आरती का पूरा भाव और लाभ प्राप्त होता है।

दक्षिणावर्त दिशा क्यों मानी गई खास?

ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रवाह

ब्रह्मांड का प्राकृतिक ऊर्जा-चक्र दक्षिणावर्त दिशा में चलता है।

  • पृथ्वी अपनी धुरी पर इसी दिशा में घूमती है।
  • ग्रहों की गति भी दक्षिणावर्त स्वरूप में होती है।
  • समुद्र में बनने वाले भंवर और ऊर्जा-तरंगें भी इसी दिशा का अनुसरण करती हैं।

आरती को दक्षिणावर्त घुमाने से हम अपने आस-पास की ऊर्जा को ब्रह्मांडीय लय के अनुरूप कर देते हैं।

सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण

दक्षिणावर्त गति सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित और केंद्रित करती है।
आरती की लोम-पलकों में जलती लौ, धूप की सुगंध और मंत्रों की ध्वनि मिलकर एक ऐसा ऊर्जा-क्षेत्र बनाती है, जो घर परिवार और मन दोनों को दिव्यता से भर देता है।

आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि

आरती की दक्षिणावर्त गति से उत्पन्न कंपन सीधे भक्तों के ऊर्जा-चक्रों को प्रभावित करते हैं।

  • मन शांत होता है।
  • विचार शुद्ध होते हैं।
  • नकारात्मकता हटती है।

इसी कारण नियमित और सही दिशा में की गई आरती आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग खोलती है।

धार्मिक और प्रतीकात्मक महत्व

प्रदक्षिणा का प्रतीक

हिन्दू धर्म में किसी भी देवता की परिक्रमा हमेशा दक्षिणावर्त की जाती है। आरती इसी प्रदक्षिणा का सूक्ष्म रूप है। आरती की थाली को दक्षिणावर्त घुमाकर हम यह भाव व्यक्त करते हैं कि—हमारा जीवन ईश्वर की परिक्रमा है।

सृष्टि का चक्र और मोक्ष का मार्ग

दक्षिणावर्त गति जीवन और सृष्टि के प्राकृतिक चक्र का प्रतीक है। जन्म से लेकर मोक्ष तक की समस्त यात्रा इसी चक्र से संचालित मानी गई है। इसलिए आरती की दक्षिणावर्त गति भक्त को इस ब्रह्माण्डीय चक्र में समाहित करती है।

गलत दिशा क्यों नहीं?

यदि आरती को वामावर्त (Anticlockwise) घुमाया जाए, तो माना जाता है कि—

  • ऊर्जा अव्यवस्थित हो जाती है।
  • नकारात्मक कंपन सक्रिय हो सकते हैं।
  • पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार वामावर्त गति केवल विशेष तांत्रिक साधनाओं में उपयोगी होती है।

आरती केवल दीप घुमाने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा, परंपरा, विज्ञान और भक्ति का संगम है। यदि इसे सही दिशा दक्षिणावर्त में किया जाए, तो यह आपके जीवन, घर और मन में दिव्यता, शांति और सकारात्मकता का अद्भुत संचार करती है।

इसलिए अगली बार आरती करते समय, सिर्फ भक्ति ही नहीं, बल्कि दिशा का भी ध्यान रखें क्योंकि सही दिशा ही आपकी आरती को पूर्ण और फलदायी बनाती है।

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