KNEWS DESK- सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रोहिंग्या शरणार्थियों के कथित तौर पर लापता होने से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी की और केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया। याचिका में कहा गया था कि कुछ रोहिंग्या शरणार्थी अचानक गायब हो गए हैं और उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई गई। साथ ही केंद्र को इस मामले में जरूरी कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई को आगे बढ़ाते हुए स्पष्ट किया कि इस मुद्दे को उस रूप में नहीं देखा जा सकता, जैसा याचिकाकर्ता प्रस्तुत कर रहे हैं।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, “आप जानते हैं कि वे घुसपैठिए हैं। भारत के उत्तरी बॉर्डर बेहद संवेदनशील हैं। आप यह भी जानते हैं कि देश में क्या हो रहा है। अगर कोई यहां गैरकानूनी तरीके से आया है, तब भी आप उनके लिए रेड कार्पेट चाहते हैं?”
कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे लोगों के लिए भारत जैसा देश, जहां सीमाएं लगातार सुरक्षा चुनौतियों से घिरी हैं, उन्हें स्वचालित रूप से भोजन, आवास, शिक्षा और अन्य सुविधाओं का अधिकार नहीं दे सकता।
पीठ ने यह भी जोड़ा, “वे सुरंगों के जरिए घुसते हैं और फिर आपके खाने, निवास, बच्चों की शिक्षा के अधिकारी बन जाते हैं। क्या हम कानून की सीमाओं को इतना खींचना चाहते हैं?”
याचिकाकर्ताओं ने रोहिंग्या शरणार्थियों के लापता होने को ‘अवैध हिरासत’ बताते हुए हीबस कॉर्पस याचिका दायर की थी। इस पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि इस तरह की याचिका “काफी काल्पनिक” है और इस मामले में लागू नहीं होती।
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि यह विषय राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध प्रवासन से जुड़ा हुआ है। ऐसे मामलों में कोर्ट अत्यधिक सतर्कता से कदम उठाता है। इसलिए प्राथमिक चरण में ही केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया गया।
कोर्ट का फैसला संकेत देता है कि अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले किसी भी समूह के लिए विशेष संरक्षण मांगने वाली याचिकाओं को अदालत हल्के में नहीं लेगी।