नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया–राहुल पर नई FIR, कांग्रेस हुई आक्रामक, सरकार पर राजनीतिक प्रतिशोध का लगाया आरोप

डिजिटल डेस्क- नेशनल हेराल्ड केस एक बार फिर राजनीतिक टकराव का केंद्र बन गया है। दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी, सांसद राहुल गांधी समेत कुल 9 लोगों और तीन कंपनियों के खिलाफ नई FIR दर्ज की है। पुलिस का आरोप है कि एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की करीब 2,000 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्तियों को मात्र 50 लाख रुपये में हड़पने की आपराधिक साजिश रची गई। FIR दर्ज होते ही कांग्रेस नेतृत्व ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला शुरू कर दिया है।

कांग्रेस का पलटवार – “फर्जी केस, राजनीतिक बदला”

कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने FIR को पूरी तरह फर्जी बताते हुए कहा कि मामला कानूनी रूप से टिक नहीं सकता। उनका कहना है कि यह पूरी तरह से राजनीतिक रूप से प्रेरित केस है। हमारे वकीलों ने बार-बार कहा है कि इसमें न मनी लॉन्ड्रिंग का कोई मामला बनता है, न प्रॉफिट की कोई बात उठती है, क्योंकि यह एक नॉन-प्रॉफिट संस्था है। यह केस केवल विपक्ष को दबाने की कोशिश है।” उन्होंने दावा किया कि दिल्ली पुलिस “ऊपर से आने वाले आदेश” पर काम कर रही है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सरकार पर प्रतिशोध की राजनीति का आरोप लगाया। उन्होंने लिखा कि मोदी-शाह की जोड़ी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को डराने और राजनीतिक प्रतिशोध के जरिए कमजोर करने की कोशिश कर रही है। जो खुद असुरक्षित होते हैं, वही दूसरों को डराने की कोशिश करते हैं।” जयराम रमेश ने दोहराया कि नेशनल हेराल्ड केस “झूठ और निराधार आरोपों” पर आधारित है और अंत में “न्याय की ही जीत होगी।”

क्या है नेशनल हेराल्ड विवाद?

नेशनल हेराल्ड अखबार 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा शुरू किया गया था। इसका संचालन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) करती थी, जिसके पास दिल्ली, लखनऊ, मुंबई और अन्य शहरों में करीब 2 हजार करोड़ रुपये की संपत्तियाँ मौजूद थीं। आरोप है कि कांग्रेस से जुड़े नेताओं ने Young Indian कंपनी के जरिए AJL की इन संपत्तियों को मात्र 50 लाख रुपये में अपने नियंत्रण में ले लिया, जो कि गंभीर आर्थिक अनियमितता और आपराधिक षड्यंत्र की श्रेणी में आता है। नई FIR दर्ज होने के बाद देश की राजनीति में हलचल तेज है। कांग्रेस इसे विपक्ष को दबाने की कोशिश बता रही है, जबकि सरकारी एजेंसियां दावा कर रही हैं कि कार्रवाई कानूनी तथ्यों और वित्तीय अनियमितताओं पर आधारित है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह केस आने वाले महीनों में राजनीतिक बहस को और भी गरम कर सकता है, क्योंकि मामला सीधे देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार और विपक्षी नेतृत्व से जुड़ा है।

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