अल-फलाह यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर पर ईडी ने किया बड़ा खुलासा, मृत हिंदूओं के नाम से किया बड़ा जमीन घोटाला

डिजिटल डेस्क- दिल्ली के लाल किले के सामने हुए कार धमाके से जुड़ी जांच लगातार नए खुलासे कर रही है। इस मामले की पड़ताल करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अब अल-फलाह यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर जावेद अहमद सिद्दीकी और उनकी संस्था तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन से जुड़े एक बड़े जमीन घोटाले का पर्दाफाश किया है। जांच में सामने आया है कि मदनपुर खादर क्षेत्र में मृतक हिंदू व्यक्तियों के नाम पर फर्जी दस्तावेज़ तैयार कर करोड़ों की जमीन अवैध रूप से खरीदी गई और अंत में वह जमीन तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम दर्ज कर दी गई। ED की रिपोर्ट के अनुसार, मदनपुर खादर के खसरा नंबर 792 वाली जमीन को बेचने के लिए जनरल पॉवर ऑफ अटॉर्नी (GPA) का इस्तेमाल किया गया, लेकिन यह GPA पूरी तरह फर्जी निकली।

हस्ताक्षर और अंगूठा लगाने वालों की हो चुकी है कई वर्ष पहले मृत्यु

जांच में पाया गया कि GPA पर जिन लोगों के हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान दर्शाए गए थे, उनमें कई व्यक्ति वर्षों पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। दस्तावेज़ पर 7 जनवरी 2004 की तारीख दर्ज है, जबकि ED के रिकॉर्ड के मुताबिक नथू सिंह की मौत 1972 में, हरबंस सिंह की 1991 में, हरकेश की 1993 में और शिव दयाल व जय राम की मौत 1998 में हो चुकी थी। इसके बावजूद इन्हीं मृत व्यक्तियों को दस्तावेज़ में “जिंदा” बताकर उनकी हिस्सेदारी भी बेच दी गई। यह फर्जी GPA विनोद कुमार के नाम पर तैयार की गई, जिसने उसी के आधार पर आगे जमीन बेच दी। नौ साल बाद 27 जून 2013 को एक रजिस्टर्ड सेल डीड बनवाई गई, जिसमें जमीन की कीमत मात्र 75 लाख रुपये दिखाई गई, जबकि बाजार मूल्य उस समय ढाई से तीन करोड़ रुपये के बीच था। सेल डीड में खरीदार के तौर पर तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन का नाम दर्ज है, जबकि विनोद कुमार ने मृत व्यक्तियों सहित सभी मालिकों की ओर से हस्ताक्षर किए।

वास्तविक मालिकों ने खटखटाया कोर्ट का दरवाजा

जमीन के वास्तविक मालिकों के परिवार ने इस फर्जीवाड़े का विरोध करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पीड़ित परिवार के सदस्य कुलदीप बिधूड़ी और भगत सिंह बिधूड़ी ने बताया कि उनके पूर्वजों की जमीन को जाली हस्ताक्षरों और फर्जी दस्तावेज़ों के जरिए बेच दिया गया। कोर्ट में मामला जाने के बाद अवैध निर्माण को भी ध्वस्त किया गया। एक अन्य दावेदार धर्मेंद्र बिधूड़ी ने बताया कि उनके परदादा नत्थू सिंह की मौत 1972 में हो चुकी थी, बावजूद इसके 2004 की GPA में उनके फर्जी हस्ताक्षर दिखाए गए।

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